For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

" कौन हो तुम ?"
" जन्म से मुस्लिम , मन से सच्चा हिन्दुस्तानी , तन से अधनंगा और पेट से भूखा हूँ ।"
"लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रही हैं ?आप कौन हैं ?"
" हा! हा! हा ! हा ! हा !" ज़ोर का अट्टहास किया और बोली-" मुझे दंगों की दुनिया की बेताज मलिका "साम्प्रदायिकता" कहते हैं । " उसने बस इतना ही कहा और एकदम पिस्टल निकालकर दो-तीन गोलियाँ उसकी कनपटी में दाग दी और फरार हो गई ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

Views: 1125

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:29pm
आदरणीया राहिला जी लघुकथा पर अपनी प्रतिक्रिया देकर मान बढ़ाने का बहुत-बहुत शुक्रिया ।
Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:27pm
बहुत-बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी ।
Comment by Mohammed Arif on October 27, 2017 at 6:26pm
आदरणीय महेंद्र कुमार जी लघुकथा पर अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया देकर सफल बनाने का बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Rahila on October 23, 2017 at 2:00pm
बेहतरीन रचना आदरणीय आरिफ़ साहब!खूब बधाई
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 22, 2017 at 10:10am

साम्प्रदायिकता की मल्लिका का ही बोलबाला है आजकल | जनता त्रस्त है | लाजवाब लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by Mahendra Kumar on October 22, 2017 at 9:52am

वाह! शानदार लघुकथा है आ. मोहम्मद आरिफ़ जी. शीर्षक चयन और उस शीर्षक को सार्थक करता संवाद दोनों उम्दा हैं. दिल से ढेर सारी बधाई स्वीकार कीजिए. 

//" जन्म से मुस्लिम , मन से सच्चा हिन्दुस्तानी , तन से अधनंगा और पेट से भूखा हूँ ।"
"लेकिन आप यह सब क्यों पूछ रही हैं ?आप कौन हैं ?"// टंकण त्रुटी के कारण यहाँ दो बार इनवर्टेड कॉमा लग गया है. देख लीजिएगा. सादर.

Comment by Mohammed Arif on October 21, 2017 at 4:25pm
आदरणीया नीता कसार जी आदाब , आपकी सटीक और उत्साहजनक टिप्पणी से लेखन को सार्थकता और संबल मिला । बहुत-बहुत आभार ।
Comment by Nita Kasar on October 21, 2017 at 2:09pm
मुझे दंगों की दुनिया की बेताज मलिका सांप्रदायिकता कहते है कटु करारे व्यंग्य से लबरेज़ कथा के लिये बधाई आद०मोहम्मद आरिफ़ जी
Comment by Mohammed Arif on October 20, 2017 at 5:55pm
आदरणीय आशुतोष जी आदाब, आपकी उत्साहजनक टिप्पणी से लेखन को बल मिला और लेखन सार्थक हो गया । बहुत-बहुत आभार आपका ।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 20, 2017 at 5:31pm
आदरणीय आरिफ जी गागर में सागर है आपकी यह रचना ।।क्या खूब तरीके से साम्प्रदायिकता को समझ दियाआपने वो भी इस खूबसूरत अंदाज से इस रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"जनाब महेन्द्र कुमार जी,  //'मोम-से अगर होते' और 'मोम गर जो होते तुम' दोनों…"
1 minute ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय शिज्जु शकूर साहिब, माज़रत ख़्वाह हूँ, आप सहीह हैं।"
1 hour ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"इस प्रयास की सराहना हेतु दिल से आभारी हूँ आदरणीय लक्ष्मण जी। बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय दिनेश जी। आभारी हूँ।"
8 hours ago
Zaif replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"212 1222 212 1222 रूह को मचलने में देर कितनी लगती है जिस्म से निकलने में देर कितनी लगती है पल में…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"सादर नमस्कार आ. ऋचा जी। उत्साहवर्धन हेतु दिल से आभारी हूँ। बहुत-बहुत शुक्रिया।"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। इस प्रयास की सराहना हेतु आपका हृदय से आभारी हूँ।  1.…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमित जी, सादर अभिवादन! आपकी विस्तृत टिप्पणी और सुझावों के लिए हृदय से आभारी हूँ। इस सन्दर्भ…"
8 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की इस्लाह क़ाबिले ग़ौर…"
9 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय अमीर जी बहुत शुक्रिया आपका संज्ञान हेतु और हौसला अफ़ज़ाई के लिए  सादर"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"मोहतरम बागपतवी साहिब, गौर फरमाएँ ले के घर से जो निकलते थे जुनूँ की मशअल इस ज़माने में वो…"
10 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-165
"आदरणीय दिनेश कुमार विश्वकर्मा जी आदाब, तरही मिसरे पर अच्छी ग़ज़ल कही है आपने मुबारकबाद पेश करता…"
11 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service