आया फिर से सन्निकट दीप-पर्व अभिराम
बागी की शुभकामना सबके लिए प्रकाम
सबके लिय प्रकाम हर्ष वैभव हो भारी
अवध पधारे राम कहें राजेश कुमारी
कहते है गोपाल चतुर्दिक सौरभ छाया
नभ का तारक–माल उतर धरती पर आया
प्राची के मन में भरा है गहरा संताप
शरद--इंदु जी किसलिए है इतने चुपचाप
है इतने चुपचाप निशा तमसावृत काली
दूर् किये सब पाप मना हमने दीवाली
कहते है गोपाल बात शत-प्रतिशत साची
निज को रही संभाल प्रतीक्षारत है प्राची
माला दीपों की सजी देख रहे गिरिराज
योगराज का भी यहाँ है समवेत समाज
है समवेत समाज अड़े वामनकर भाई
शिज्जू जी का साज पर्व की है तरुणाई
कहते है गोपाल सभी का ढंग निराला
पूजा का है थाल थाल में जलती ज्वाला
राका गर्वित आज है अद्भुत उसका वेश
देती है दीपावली सबको यह सन्देश
सबको यह सदेश तमस को दूर भगाओ
मिटे सभी के क्लेश भाव कुछ ऐसा लाओ
कहते है गोपाल बहुत है धूम-धडाका
पहने दीपक-माल जागती मावस राका
आती हैं इस पर्व में लक्ष्मी सबके गेह
सुनिए अरुण कुमार जी इसको सहित सनेह
इसको सहित सनेह रमा है सबकी माता
बरसाती धन मेह रंक बन जाता दाता
कहते है गोपाल रत्नगर्भा हो जाती
धरती भी तत्काल दिवाली जब भी आती
(मौलिक/ अप्रकाशित )
Comment
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,
खूबसूरत रचना के लिए,और दीपावली की बधाई स्वविकार करें।
आदरणीय गोपाल नारायण जी,
दीपोत्सव पर इस सुन्दर छंद प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
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