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'ग़ालिब'की ज़मीन में एक ग़ज़ल

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फाइलुन

दूर कितनी शादमानी और है
कुछ दिनों की जाँ फिशानी और है

मेरे फ़न की दाद सबने दी मुझे
आपकी बस क़द्रदानी और है

हो चुकीं सब मौत की तैयारियाँ
दोस्तों की नोहा ख़्वानी और है

है ख़बर सबको बहादुर वो नहीं
उसकी वज्ह-ए-कामरानी और है

दास्तान-ए-इश्क़ तो तुम सुन चुके
ज़िन्दगानी की कहानी और है

दोस्तों से तो मुआफ़ी मिल गई
मुझको ख़ुद से सरगरानी और है

लग रहा है उनकी बातों से "समर"
उनके दिल में बदगुमानी और है
---
शादमानी-ख़ुशी
जाँ फिशानी-कोशिश
नोहा ख़्वानी-रोना पीटना,मातम करना
कामरानी-जीत
सरगरानी-नाराज़गी
समर कबीर
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on November 10, 2017 at 2:25pm
जनाब धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 10, 2017 at 2:18pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय समर जी, बधाई स्वीकार करें।

Comment by Samar kabeer on November 6, 2017 at 10:04am
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
Comment by vijay nikore on November 6, 2017 at 6:55am

//दास्तान-ए-इश्क़ तो तुम सुन चुके
ज़िन्दगानी की कहानी और है//

अच्छी गज़ल कही है।

Comment by Samar kabeer on November 3, 2017 at 3:31pm
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,सुख़न नवाज़ी और दाद-ओ-तहसीन के लिए तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Ravi Shukla on November 3, 2017 at 2:47pm
आदरणीय समर साहब ग़ालिब की जमीन पर कही गई ग़ज़ल का बहुत-बहुत स्वागत है हर शेर कमाल का मुझ को खुद से सर गिरानी और है कमाल का शेर हुआ है यह

दास्तान-ए-इश्क़ तो तुम सुन चुके
ज़िन्दगानी की कहानी और है यह शेर भी कमाल का है
इस ग़ज़ल की जितनी तारीफ की जाए कम है ग़ालिब की जमीन पर ग़ज़ल कहना एक मुश्किल काम है जिसे आपने बखूबी अंजाम दिया है मुबारकबाद कुबूल करें इससे बेहतर गजल के लिए
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 2:37pm
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 2:36pm
जनाब सौरभ पाण्डेय साहिब आदाब,
'मेरे फ़न की दाद सबने दी मुझे
आपकी बस क़द्रदानी और है'
यूँ समझ लीजिए की ये शैर मैंने आप ही को ध्यान में रख कर कहा, ग़ज़ल आपको पसंद आई लिखना सार्थक हुआ,शिर्कत और दाद-ओ-तहसीन के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Samar kabeer on October 26, 2017 at 2:29pm
जनाब शिज्जु शकूर साहिब आदाब,बहुत दिनों बाद अपनी ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रया पाकर ख़ुशी हुई,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by रामबली गुप्ता on October 25, 2017 at 8:59pm
वाह वाह और सिर्फ वाह। हर शैर दमदार हुआ है आदरणीय समर भाई साहब। दिल की गहराइयों से मुबारकबाद क़ुबूल करें।सादर

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