महाकवि कालिदास ने ‘मेघदूत ‘ खंड काव्य में दोहद’ शब्द का प्रयोग किया है -
रक्ताशोकश्चलकिसलय: केसरश्चात्र कान्त:
प्रत्यासन्नौ कुरबकवृतेर्माधवीमण्डपस्य।
एक: सख्यास्तव सह मया वामपादाभिलाषी
काङ्क्षत्वन्यो वदनमदिरां दोहदच्छद्मनास्या:।।
[उस क्रीड़ा-शैल में कुबरक की बाढ़ से घिरा हुआ मोतिये का मंडप है, जिसके पास एक ओर चंचल पल्लवोंवाला लाल फूलों का अशोक है और दूसरी ओर सुन्दर मौलसिरी है । उनमें से पहला मेरी तरह की दोहद के बहाने तुम्हारी सखी के बाएँ पैर का आघात चाहता है, और दूसरा (बकुल) उसके मुखसे मदिरा की फुहार का इच्छुक है।]
‘दोहद ‘ का सामान्य शाब्दिक अर्थ है - गर्भवती स्त्रियों की भिन्न-भिन्न इच्छाएं , उकौना, गर्भवती स्त्रियों की मितली , गर्भ चिह्न , गर्भावस्था , गर्भ , अनंत और विचित्र इच्छाएं
उक्त के अतिरिक्त ‘दोहद’ एक ऐसा लोक- विश्वास भी है जिसके अनुसार यदि सर्वतोभाव सुन्दर स्त्री प्रियंगु,लता का स्पर्श करती है तो उसमे फूल आने लगते हैं . इसी प्रकार जब वह मौलसिरी पर अपने चबाये पान का पीक थूकती है तो वह भी पुष्पित हो उठता है . यदि ऐसी नारी अशोक के वृक्ष पर चरणाघात करती है तो वह सुमनावली से लद जाता है. तिलक का वृक्ष तो केवल उसके दृष्टिपात से ही प्रफुल्ल है जो अति शीघ्र पुष्पित होने की आशा में यक्ष की सर्वांग सुन्दर पत्नी जिसे अलकापुरी में ब्रह्मा की प्रथम कृति के रूप में जाना जाता है, का ‘वामपादाभिलाषी’ अर्थात बायें पैर के आघात का अभिलाषी चित्रित किया गया है
Comment
दोहद के विषय में आपने बहुत ही सारगर्भित और महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा की है ꘡ इस संबंध में निश्चय ही बहुत कम लोगों को जानकारी होगी ꘡आपका बहुत बहुत धन्यवाद ꘡
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