For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

(ग़ज़ल - इस्लाह के लिए) अक्सर तन्हाई में रोया करता हूँ -(गुरप्रीत सिंह)

22-22-22-22-22-2

अक्सर तन्हाई में रोया करता हूँ।
अपने आँसू ख़ुद ही पोंछा करता हूँ।

देर तलक आईना देखा करता हूँ।
जाने उसमें किसको ढूँढा करता हूँ।

दिल में दर्द उठे तो फ़िर क्या करता हूँ?
बस उसकी तस्वीर से शिक्वा करता हूँ।

क्या वो अब भी याद मुझे करता होगा?
ख़ुद से ऐसी बातें पूछा करता हूँ।

एक न इक दिन पत्थर पिघलेगा पगले!
ये कह के दिल को बहलाया करता हूँ।

शाम ढले वो तोड़ दिया करता हूँ मैं,
सुब्ह जो अक्सर ख़ुद से वादा करता हूँ।

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 1037

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Gurpreet Singh jammu on November 9, 2017 at 11:28am
शुक्रिया आदरणीय लक्ष्मण जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 9, 2017 at 11:27am
शुक्रिया आदरणीय अजय तिवारी जी
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 9, 2017 at 11:27am
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय समर कबीर जी ..आपकी इस्लाह के मुताबिक ग़ज़ल में बदलाव कर रहा हूँ जी
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on November 6, 2017 at 11:15pm
हार्दिक बधाई ।
Comment by Ajay Tiwari on November 6, 2017 at 12:23pm

आदरणीय गुरप्रीत जी, 

अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक शुभकामनाएं.

बाकी आदरणीय समर साहब सब कह चुके हैं.

सादर 

Comment by Samar kabeer on November 5, 2017 at 9:46pm
जनाब गुरप्रीत सिंह जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीजर करें ।
'पत्थर इक ना इक दिन पिघलेगा पगले'
इस मिसरे को यूँ करें तो गेयता बहतर हो जाएगी:-
'एक न इक दिन पत्थर पिघलेगा पगले'
'क्यों करता हूँ हुस्न से वफ़ा की उम्मीदें'
इस मिसरे की लय ठीक नहीं,इसे यूँ कर सकते हैं :-
'हुस्न से क्यों करता हूँ वफ़ा की उम्मीदें'
आख़री शैर के दोनों मिसरों में 'रोज़'शब्द खटकता है, इस शैर को यूँ कर सकते हैं :-
'शाम ढले वो तोड़ दिया करता हूँ मैं
सुब्ह जो अक्सर ख़ुद से वादा करता हूँ'
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 5, 2017 at 4:51pm
शुक्रिया आदरणीय राम अवध जी ..
"क्यों करता हूँ हुस्न से वफ़ा की उम्मीदें?"
इस मिसरे में क्या बह्र के लिहाज़ के कुछ कमी है या कुछ और , मैं समझ नहीं पा रहा ..क्रुप्या इस पर कुछ क्लियर करें ...धन्यवाद
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 5, 2017 at 4:46pm
शुक्रिया आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी ....जी गुणीजनो कि राय का इँतज़ार है
Comment by Gurpreet Singh jammu on November 5, 2017 at 4:45pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सलीम जी ..
"शाम ढले मैं तोड़ दिया करता हूँ रोज़
सुब्ह को जो भी ख़ुद से वादा करता हूँ"
आख़िरी शिअर अगर ऐसे कहूँ ती क्या ठीक रहेगा? क्रुप्या बताएं
और अगर ग़ज़ल की बाकी कमियों के बारे में भी थोड़ा विस्तार से बताएं तो मेहरबानी होगी ता कि उन्हें सुधारने कि कोशिश कर सकूँ .. अगर कोई सुझाव हो तो ज़रूर दें । शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on November 5, 2017 at 4:33pm
जनाब ग़ज़ल के लिए बधाई
अभी ग़ज़ल और मेहनत मांग रही है.
अखिर शेर के दोनों मिसरे बे बहर हो रहे हैं..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
7 hours ago
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी's blog post was featured

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]

एक धरती जो सदा से जल रही है   ********************************२१२२    २१२२     २१२२ एक इच्छा मन के…See More
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . .तकदीर

दोहा सप्तक. . . . . तकदीर   होती है हर हाथ में, किस्मत भरी लकीर । उसकी रहमत के बिना, कब बदले तकदीर…See More
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ छियासठवाँ आयोजन है।.…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय  चेतन प्रकाश भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आदरणीय बड़े भाई  आपका हार्दिक आभार "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आभार आपका  आदरणीय  सुशील भाई "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service