For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सबसे छोटा क़ाफ़िया और सबसे बड़ी रदीफ़ पर एक और ग़ज़ल - सलीम रज़ा रीवा


212 212 212 212, 212 212 212 212

-

जब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी /

लब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

-

तुम मेरे साथ हो, चांदनी रात हो, होंट की बात हो, ज़ुल्फ़ की बात हो /

तब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

-

हम नहीं चाँद तारे ये काली घटा गूंचा ओ गुल ये बुलबुल ये महकी फिज़ा /

सब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

-

हम गुनहगार है, हम सियह कार हैं, फिर भी रहमो करम पे यकी है हमें /

रब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

-

ऐ  रज़ा दर - बदर हम भटकते रहे  प्यार क्या , प्यार का इक निशाँ ना मिला /

अब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

-

 "मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 1277

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 10:39pm
आदरणीय काली प्रसाद जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया,
Comment by Kalipad Prasad Mandal on November 15, 2017 at 7:52pm

आदरणीय सलीम रज़ा रेवा साहिब, आदाब आपका प्रयास काबिले तारीफ है | दिली मुबारक बाद स्वीकार करे |

Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 6:57pm
आ. प्रदीप कुमार पांडेय जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 6:56pm
आ. सुशील जी, आपकी महब्बत सलामत रहे, ग़ज़ल पर आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 6:55pm
आ. छोटे लाल जी,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on November 15, 2017 at 6:54pm
जनाब आरिफ साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by Afroz 'sahr' on November 15, 2017 at 5:25pm
आदरणीय सलीम रज़ा साहिब इस रचना पर बघाई आपको कहीं कहीं मिसरों में शिल्प कमज़ोर है । ग़ज़ल के चौथे शेर का सानी मिसरा ज़ू मानी हो रहा है तथा " रब "के साथ बहूवचन "तुम्हारी", "आपकी", आदि शब्दों का प्रयोग कथ्य के लिहाज़ से उचित नहीं है । गौ़र कीजिएगा सादर,,,,
Comment by प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप' on November 15, 2017 at 3:37pm
ज़नाब सलीम रज़ा साहिब!

इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद क़ुबूल कीजिए।
Comment by Sushil Sarna on November 15, 2017 at 12:29pm

हम गुनहगार है, हम सियह कार हैं, फिर भी रहमो करम पे यकी है हमें /
रब तुम्हारी महब्बत में खो जाएंगे बिगड़ी क़िस्मत भी इक दिन संवर जाएगी //

वाह आदरणीय सलीम साहिब इस बेहतरीन अशआर की ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।

Comment by डॉ छोटेलाल सिंह on November 15, 2017 at 11:31am
आदरणीय सलीम रजा साहब आपकी गजल काबिलेतारीफ है बहुत बहुत मुबारकबाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
15 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service