मधुर दोहे :
मन के मधुबन में मिले, मन भ्र्मर कई बार।
मूक नयन रचते रहे, स्पंदन का संसार।।
थोड़ा सा इंकार था थोड़ा सा इकरार।
सघन तिमिर में हो गयी , प्रणय सुधा साकार।।
बाहुपाश से देह के, टूटे सब अनुबंध।
स्वप्न सेज महका गयी ,मधुर बंध की गंध।।
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामानुज जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का दिल से आभार। भविष्य में ५ से कम तो कभी नहीं होंगे आपके प्रिय दोहे। थैंक्स
आदरणीय Tasdiq Ahmed Khan साहिब, आदाब , सृजन को अपनी मनोहारी प्रतिक्रिया से मान देने का दिल से आभार।
सुंदर दोहे | अगली बार आपके कम से कम पाँच दोहें पढने को मिलने चाहिए भाई शुशील सरना जी
आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी सृजन को मान देने एवं सुझाव देने का दिल से आभार।
बहुत सुन्दर
//मन भ्रमर कई बार //.... इसमें प्रवाह बाधित है, शब्द संयोजन को बदल कर देखें
सादर
आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब मधुर दोहों पर आपकी मधुर प्रतिक्रिया ने उनकी मधुरता में चार चाँद लगा दिए ... तहे दिल से शुक्रिया। विशवास रखिये अब जब भी हम आएंगे ५ दोहों से कम तो कभी न आएंगे। सादर। ...
आदरणीय मो. आरिफ साहिब, आदाब , सृजन को अपनी मनोहारी प्रतिक्रिया से मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय सलीम साहिब आदाब , प्रस्तुति के भावों को अपनी मधुर प्रशंसा से अलंकृत करने का दिल से आभार।
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