(मफाईलुन-मफाईलुन -फऊलन )
किसी खंजर का मत अहसान लीजिए |
हमारी मुस्करा कर जान लीजिए |
जिसे अपना बनाने जा रहे हैं
उसे अच्छी तरह पहचान लीजिए |
हमारा साथ दोगे ज़िंदगी भर
वफ़ा से पहले दिल में ठान लीजिए |
मुझे तो बाद में चुन लीजिएगा
जहाँ की खाक पहले छान लीजिए |
किसे है ख़ौफ़ दिलबर इम्तहाँ का
कमाँ हाथों में अपने तान लीजिए |
किसी का लीजिए अहसान लेकिन
न दौलत मंद का अहसान लीजिए |
मुहब्बत की कहाँ होती है मंज़िल
ये सच तस्दीक़ पहले जान लीजिए |
(मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
जनाब राम अवध साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब खूबसूरत ग़ज़ल के लिये बहुत बहुत बधाई।
जनाब गुर प्रीत साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीय तस्दीक अहमद खान जी ,,,बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ,,मतला विशेष तौर पर पसंद आया ,, मुबारकबाद कुबूल करें जी
जनाब सलीम रज़ा साहिब ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
मुहतर्मा रक्षिता साहिबा ,ग़ज़ल में आपकी शिरकत और हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया
मुहतरम जनाब समर साहिब , लीजे लफ्ज़ उर्दू डिक्शनरी में है ही नहीं ,सिर्फ बोल चाल में है जो कि "लीजिये " में हर्फ़ को गिरा कर मिलता है ।
वज़्न इसका लीजे ही लिया गया है ।मेरे हिसाब से लिखने में तो सही लफ्ज़ ही लिखना चाहिए जो मैं ने किया है --सादर
आदरणीय, तस्दीक़ जी
खूबसूरत गज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद।
ये कैसे मुमकिन है कि आप 'लीजिए' लिखें और पाठक उसे "लीजे" पढ़े, दोनों लफ़्ज़ अपनी अपनी जगह सही हैं ?
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