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ग़ज़ल -दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही अहबाब था-कालीपद 'प्रसाद'

काफिया :आब ; रदीफ़ ;था

बह्र :२१२२  २१२२  २१२२  २१२

दिल को’ जिसने बेकरारी दी वही ऐराब था

जिंदगी के वो अँधेरी रात में शबताब था |

मेरे जानम प्यार का ईशान था, महताब था

चिडचिडा मैं किन्तु उसमे तो धरा का ताब था |

स्वाभिमानी मान कर खुद को, गँवाया प्यार को

सच यही, मैं प्यार में उनके सदा बेताब था |

आग को मैं था लगाता, बात छोटी या बड़ी

आग को ठंडा किया करता, निराला आब था |

शब कटी बेदारी’ में, बीते नहीं दिन चैन से

आँख में जो अश्क था दिल का वही सैलाब था |

याद है तुमसे मिला मैं, आज तक भूला नहीं  

इल्तफाते नाज़ की सौगात वो नायाब था |

लंका’ से ओखी उठी, फिर केरला गुजरात तक

शीत मौसम में उठी आँधी बनी गिर्दाब था |

जिंदगी की नाव, मौजों में रही वो काँपती  

डूबना था नाव को, पानी जहाँ पायाब था |

रोज उनकी मुझसे’ आखें चार का था सिलसिला

मेरे’ घर की खिड़की’ उनके सामने का बाब था |

जन्म से इंसान सब, इंसानियत ही धर्म है

मज्हबीयत मानना ‘काली’ खुदा इज्राब था |

___________________________

 शब्दार्थ : ऐराब =जो बचाने केलिए सामने खडा हो जाय 

शबताब=अँधेरे में चमकने वाले ,जैसे चाँद ,तारे

ताब= सहनशीलता, बेदारी’=जागरण

इल्तफाते नाज़ =अदा से कनखियों से देखना,

गिर्दाब=पानी का भँवर, बाब = दरवाज़ा

इज्राब = अवज्ञा करना, आदेश न मानना  

मौलिक और अप्रकाशित 

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Comment by Afroz 'sahr' on December 14, 2017 at 4:23pm
आदरणीय कालीपद प्रसाद जी लफ़्ज़ "सैराब" का अर्थ होता है,,, "तृप्त", जिसकी प्यास बाक़ी न रही हो,
Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:56am

आ सुरेन्द्र नाथ सिंह जी , ब्लॉग पर आने केलिए सादर आभार 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 13, 2017 at 10:55am

आ समर कबीर साहिब आदाब , 'सैराब' शब्द का अर्थ मुझे नहीं पता | शब्दकोष में भी यह शब्द नहीं मिला | कोई दुसरा उपयुक्त  शब्द हों तो बतायें |सादर 

Comment by नाथ सोनांचली on December 13, 2017 at 4:10am

आद0 कालीपद प्रसाद मंडल जी सादर अभिवादन। ग़ज़ल का उम्दा प्रयास आपका।  आद0 आली जनाब समर सर की बातों पर गौर फ़रमायें। मेरी शैर दर शेर बधाई आपको।

Comment by Samar kabeer on December 12, 2017 at 11:05pm

'बेताब' इसलिये नहीं ले सकते कि सानी में "शबताब" क़ाफ़िया है, हाँ एक विकल्प है "सैराब",देखियेग ।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 12, 2017 at 8:08pm

आ समर कबीर साहब आदाब , ऐराब का अर्थ उर्दू शब्दकोष के अनुसार वह पैदल सेना जो राजा को बचाने के लिए सामने खडा हो जाय , रक्षक | मैं " लिख  रहा था बेताब ' किन्तु बेताब  एक और शेर में आ चुका था  | क्या 'बेताब ' ठीक रहेगा ? आदाब 

Comment by Samar kabeer on December 10, 2017 at 4:55pm

मतले के ऊला मिसरे में 'ऐराब' क़ाफ़िया ग़लत है,इसका अर्थ भी आपने ग़लत लिखा है 'ऐराब' का अर्थ है , ज़ेर, ज़बर,पेश की अलामतें जो अरबी शब्दों के साथ लगाई जाती हैं ।

एक शब्द है 'अ'अराब' जिसका अर्थ है ,अरब के सहरा नशीं गंवार,और सानी मिसरे में 'ज़िन्दगी के' नहीं "ज़िन्दगी की",ज़िन्दगी शब्द स्त्रीलिंग है ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 10, 2017 at 2:11pm

हार्दिक बधाई।

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 9, 2017 at 8:58am

आ समर कबीर साहिब आदाब , विन्दुवत खामियों की ओर इशारा करने और सुझाव देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया | इनको सुधार  कर दोबारा प्रस्तुत करता हूँ | सादर 

Comment by Samar kabeer on December 8, 2017 at 5:11pm

जनाब कालीपद प्रसाद मण्डल जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

मतले के ऊला मिसरे में 'क़ाफ़िया रदीफ़ के साथ सही नहीं है,क्योंकि "अहबाब"बहुवचन है, और इसका एक वचन है "हबीब"आपने इस शब्द का अर्थ ग़लत लिखा है ।

5वें शैर के सानी मिसरे में ऐब-ए-तनाफ़ुर है 'चश्म में' इसे "आँख में" कर सकते हैं ।

छटे शैर के सानी मिसरे में ' तोहफ़ा'शब्द ग़लत है,सही शब्द है "तुहफ़ा"22 ।

आख़री शैर के सानी मिसरे में 'मज़हब' का बहुवचन "मज़ाहिब" है,'मज़हबों' नहीं ।

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