एक अहंकारी पुष्प
अपनी प्रसिद्धि पर इतरा रहा है,
भॅंवरों का दल भी,
उस पर मंडरा रहा है,
निश्चित ही वह,
राग-रंग-उन्माद में,
झूल गया है,
स्व-अस्तित्व का,
कारण ही भूल गया है,
तभी तो,
बार-बार अवहेलना,
कर रहा है,
उस माली की,
जिसने उसे सुंदरता के,
मुकाम तक पहुचाया,
संभवतः उसे ज्ञात नहीं,
बयारों ने भी,
करवट बदल ली है,
जो संकेत है,
बसंत की समाप्ति का।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मुसाफिर जी, सादर अभिवादन। मेरा कोटिशः आभार स्वीकार करें।
आदरणीया कल्पना जी सादर नमस्कार। उत्साहवर्धन हेतु आपका कोटिशः आभार।
वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य पर चोट करती अच्छी प्रस्तुति । हार्दिक बधाई ।
सुंदर अभिव्यक्ति | हार्दिक बधाई |
आदरणीय सतविन्द्र कुमार जी सादर आभार स्वीकार कीजिए।
आदरणीय कुशक्षत्रप जी सादर अभिवादन। अपना स्नेह बनाये रखिएगा। सादर आभार
आदरणीय दादा समर कबीर जी सादर नमस्कार, आपके मार्गदर्शन के लिए सादर आभार, अपना स्नेह बनाए रखें। धन्यवाद
आदरणीय मोहम्मद आरिफ जी हृदयतल से आभाार स्वीकार कीजिए
आदरणीय नोज कुमार जी उम्दा अभिव्यक्ति. हार्दिक बधाई
आद0 मनोज कुमार अहसास जी सादर अभिवादन। पुष्य को बिम्बित कर बेहतरीन कविता कही आपने। कोटिश बधाइयाँ। आद0 समर कबीर साहब के बातों का संज्ञान लीजियेगा। सादर
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