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रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो - सलीम रज़ा रीवा

 212 212 212 212 -
रंज -ओ-ग़म ज़िंदगी के भुलाते रहो
गीत ख़ुशिओं के हर वक़्त गाते रहो
-
मोतियों  की तरह जगमगाते रहो
बुल बुलों की तरह चहचहाते रहो
-
जब तलक आसमां में सितारें रहें
ज़िंदगी में  सदा  मुस्कुराते  रहो
-
इतनी खुशियां मिले ज़िंदगी में तुम्हे
दोनों हांथों से  उनको  लुटाते  रहो
-
सिर्फ़ कल की करो दोस्तों फिक़्र तुम
जो गया वक़्त उसको भुलाते रहो
-
हम भी तो आपके जां  निसारों में हैं
क़िस्सा- ए- दिल हमें भी सुनाते रहो
-
ख़ुद ब ख़ुद ही फ़ज़ाएँ महक जाएंगी
अपनी ज़ुल्फ़ें हवा में उड़ाते रहो
-
रात यूँ ही न कट पाएगी जाग कर
कुछ तो मेरी सुनो कुछ सुनाते रहो
-
रोशनी कम "रज़ा" हो न जाये कहीं
तुम शम्अ अंजुमन में जलाते रहो

....

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by SALIM RAZA REWA on December 20, 2017 at 7:50am
अफ़रोज साहब खुशियों कर लिया जाएगा आपका बहुत शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 20, 2017 at 7:47am
जनाब अफ़रोज साहब,
ग़ज़ल पर आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया, आपकी सख़ावत कि खुश्बू यूँ है बनी रहे.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 20, 2017 at 7:41am
आ. सतविन्द्र कुमार जी,
आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी मुबारक़बाद का बहुत शुक्रिया.,
Comment by Afroz 'sahr' on December 19, 2017 at 11:57pm
आदरणीय सलीम रजा़ साहिब बहुत ख़ूबसूरत गज़ल शेर दर शेर दाद केसाथ मुबारकबाद पेश करता हूँ।,,,,
"ख़ुशिओं", को ख़ुशियों करलें।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 19, 2017 at 9:15pm

आदरणीय सलीम रजा रेवा जी उम्दा अशार निकले हैं.हार्दिक मुबारकबाद

Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 7:00pm
सुरेंद्र जी आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by नाथ सोनांचली on December 19, 2017 at 6:31pm

आद0 सलीम साहब सादर अभिवादन। अच्छी ग़ज़ल हुई है। शैर दर शैर दाद और मुबारकबाद कुबूल फरमायें। सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 6:29pm
आली जनाब तस्दीक साहब,
आपकी महब्बत और दुआओं के लिए शुक़गुज़ार हूँ, इस नाचीज़ पर यूँ ही करम फरमाते रहे..
Comment by SALIM RAZA REWA on December 19, 2017 at 6:26pm
मोहतरम जनाब समर साहब,
ग़ज़ल पे आपकी महब्बत और नाचीज़ पर इनायत के लिए . बड़े अदब - ओ-एहतराम से शुक्रिया अदा करता हूं....
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on December 19, 2017 at 5:50pm

जनाब सलीम रज़ा साहिब , उम्दा ग़ज़ल हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

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