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हार का अहसास उसको खा गया- लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122   2122    212


जीतने की जिस किसी ने ठान ली
मंजिलों की राह खुद पहचान ली ।1।


हार का अहसास उसको खा गया
पूछ मत अब ये कि क्यों कर जान ली।2।


है वचन शीशा न कोई टूटेगा
पत्थरों की बात चाहे मान ली ।3।


कोयलों ने होंठ अपने सी लिये
झुंड में आ मेंढकों ने तान ली ।4।


भ्रष्ट जब सारी सियासत है यहाँ
क्या है कैसे कितनी राशी दान ली।5। 

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2017 at 9:22am

आ. भाई रामअवध जी, प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 23, 2017 at 6:45am

आ. भाई रामअवध जी, प्रशंसा के लिए आभार।

Comment by Neelam Upadhyaya on December 22, 2017 at 5:01pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत ही सुंदर गजल के लिये बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on December 21, 2017 at 11:13pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,

                                      बहुत ही सादगीपूर्ण ग़ज़ल.। हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on December 21, 2017 at 9:34pm

आदर्णीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर साहब खूबसूरत ग़ज़ल प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 7:41pm

आ. भाई अफरोज जी स्नेह के लिए आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 7:40pm

आ. भाई समर जी, अभिवादन। आपकी प्रतिक्रिया से आस्वस्त हुआ । कमियों के विषय में अवगत करते रहिए । आभार ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 21, 2017 at 7:37pm

आ. भाई श्याम नारायन जी, उत्साहवर्धन के लिए आभार।

Comment by Afroz 'sahr' on December 21, 2017 at 4:20pm
जनाब लक्षमण धामी मुसाफ़िर जी इस रचना हेतु बहुत बधाई,,,,,
Comment by Samar kabeer on December 21, 2017 at 3:22pm

जनाब लक्ष्मण धामी'मुसाफ़िर'जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।

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