फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ा
22 22 22 22 22 22 22 2
अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम
और किसी से शिकवा कैसा, अपने हाथ के मारे हम
हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे
लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम
तन्हाई ने कर डाला है, जिस्म को अब मिट्टी का ढेर
साथ तेरे चाहा था मिल कर, छूते चाँद-सितारे हम
दिल की सगाई हो नहीं पायी, रिश्ते मिले थे यूं तो बहुत
आए थे इस जग में कुंवारे, और जायेंगे कुंवारे हम
बरसों बीते उनको हमने, एक नज़र देखा भी नहीं
हम थे पिता के राज दुलारे, माँ की आँख के तारे हम
सदियों से जीवन में हमारे, रात अँधेरी ठहरी है
जाने कब सूरज आएगा, देखेंगे उजियारे हम
ज़ख़्मी है लेकिन जिंदा है, दिल में अब भी इक उम्मीद
ढोते हैं अब सांस का पत्थर, बस इस के ही सहारे हम
"मौलिक-अप्रकाशित"
Comment
आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली।बाकमाल। हरेक शैर उम्दा। बहुत बहुत मुबारकबाद आपको। इस शैर के लिए अलग से दाद कुबुल फरमायें।
ज़ख़्मी है लेकिन जिंदा है, दिल में अब भी इक उम्मीद
ढोते हैं अब सांस का पत्थर, बस इस के ही सहारे हम
आदरणीय सलीम साहब, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय समर साहब, आपकी प्रशंसा एक आशीर्वाद है. हार्दिक धयवाद.
आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय राम अवध जी, हार्दिक धन्यवाद.
आदरणीय तस्दीक साहब, हार्दिक धन्यवाद.
आपकी बात सही है 'जिससे' के उच्चारण में प्रवाह बाधित होता है लेकिन 'जिससे' 'उससे' 'किससे' जैसे प्रयोग हिंदी-उर्दू का अनिवार्य हिस्सा हैं. इनसे हमेशा नहीं बचा जा सकता और न ही बचना आवश्यक है. आपका सुझाया गया मिसरा बहुत अच्छा है.
सादर
आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद.
जनाब अजय तिवारी जी आदाब,बहुत ही उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,वाह बहुत ख़ूब, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ
वाह वाह| एक बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल पढने को मिली | हार्दिक बधाई आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए|
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