For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम - अजय तिवारी

फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ेलुन  फ़ा

 22      22      22       22     22      22      22      2  

अक्सर खुद से खुद ही लड़ कर, खुद से खुद ही हारे हम

और किसी  से  शिकवा कैसा, अपने हाथ  के मारे हम

 

हम अपनी पर आ जाते तो, दुनिया बदल भी सकते थे

लेकिन थी कोई बात कि जिससे, बन के रहे बेचारे हम

तन्हाई ने कर डाला है,  जिस्म को अब  मिट्टी का ढेर 

साथ तेरे  चाहा था  मिल कर,  छूते  चाँद-सितारे  हम  

 

दिल की सगाई हो नहीं पायी, रिश्ते मिले थे यूं तो बहुत

आए थे  इस  जग  में  कुंवारे, और  जायेंगे  कुंवारे हम

 

बरसों बीते  उनको हमने, एक  नज़र   देखा भी नहीं

हम थे  पिता के राज दुलारे, माँ की आँख के तारे हम

 

सदियों  से   जीवन  में  हमारे,  रात अँधेरी   ठहरी है        

जाने  कब   सूरज  आएगा,    देखेंगे   उजियारे   हम

ज़ख़्मी है लेकिन जिंदा है, दिल में अब भी इक उम्मीद 

ढोते हैं अब सांस का पत्थर, बस इस के ही सहारे हम  

"मौलिक-अप्रकाशित"

Views: 1025

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नाथ सोनांचली on December 28, 2017 at 2:21pm

आद0 अजय तिवारी जी सादर अभिवादन। बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल पढ़ने को मिली।बाकमाल। हरेक शैर उम्दा। बहुत बहुत मुबारकबाद आपको। इस शैर के लिए अलग से दाद कुबुल फरमायें।

ज़ख़्मी है लेकिन जिंदा है, दिल में अब भी इक उम्मीद 

ढोते हैं अब सांस का पत्थर, बस इस के ही सहारे हम

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:51pm

आदरणीय सलीम साहब, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:48pm

आदरणीय समर साहब, आपकी प्रशंसा एक आशीर्वाद है. हार्दिक धयवाद.  

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:39pm

आदरणीया कल्पना जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:36pm

आदरणीय राम अवध जी, हार्दिक धन्यवाद.

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:33pm

आदरणीय तस्दीक साहब,  हार्दिक धन्यवाद. 

आपकी बात सही है 'जिससे' के उच्चारण में प्रवाह बाधित होता है लेकिन 'जिससे' 'उससे' 'किससे' जैसे प्रयोग हिंदी-उर्दू का अनिवार्य हिस्सा हैं. इनसे हमेशा नहीं बचा जा सकता और न ही बचना आवश्यक है. आपका सुझाया गया मिसरा बहुत अच्छा है. 

सादर      

Comment by Ajay Tiwari on December 28, 2017 at 12:19pm

आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद. 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 28, 2017 at 8:34am
जनाब अजय तिवारी
,बहुत ही उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,हर शेर के लिए दिल से मुबारकबाद पेश करता हूँ
Comment by Samar kabeer on December 27, 2017 at 10:35pm

जनाब अजय तिवारी जी आदाब,बहुत ही उम्दा और मुरस्सा ग़ज़ल हुई है,वाह बहुत ख़ूब, शैर दर शैर दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on December 27, 2017 at 10:14pm

वाह वाह| एक बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल पढने को मिली | हार्दिक बधाई आदरणीय इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए| 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
3 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
4 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
21 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service