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वज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है - सलीम रज़ा

212 1222 212 1222
बज़्म ये सजी कैसी कैसा ये उजाला है
महकी सी फ़ज़ाएँ हैं कौन आने वाला है
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चाँद जैसे चेहरे पे तिल जो काला काला है
मेरे घर के आँगन में सुरमई उजाला है
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इतनी सी गुज़ारिश है नींद अब तू जल्दी आ 
आज मेरे सपने में यार आने वाला है
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जागना वो रातों को भूक प्यास दुख सहना
माँ ने अपने बच्चों को मुश्किलों से पाला है
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उसके दस्त-ए-क़ुदरत में ही निज़ाम-ए-दुनिया है
इस जहान-ए-फ़ानी को जो बनाने वाला है
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मुफ़लिसी से रिश्ता है ग़म से दोस्ती अपनी
मुश्किलों को भी हमने दिल मे अपने पाला है
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उसकी शोख़ नज़रों का ये कमाल है देखो  
ज़िंदगी में अब मेरी हर तरफ उजाला है
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भूल वो गया मुझको ग़म नहीं रज़ा लेकिन
उसकी याद को दिल में अब तलक सँभाला है
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मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Mohammed Arif on January 5, 2018 at 11:33am

आदरणीय सलीम रज़ा साहब आदाब,

                             बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल । हर शेर माकूल और दिल को छू लेने वाला ।दिली मुबारकबाद कुबूल करें ।

Comment by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 3:24pm
आ. सुरेंद्र नाथ जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.. नवाज़िश
Comment by नाथ सोनांचली on January 4, 2018 at 2:13pm

आद0 सलीम रज़ा जी सादर अभिवादन। बाकमाल ग़ज़ल कही आपने, मतला जबरदस्त। हरेक शैर दमदार। पढ़कर बहुत अच्छा कगे। बहुत बहुत बधाई आपको। सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 10:17am
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहब,
आपकी नज़रे इनायत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 10:17am
श्याम नारायण जी,
आपको ग़ज़ल पसंद आई इसके लिए आपका धन्यवाद.
Comment by SALIM RAZA REWA on January 4, 2018 at 10:16am
मोहित जी बहुत बहुत शुक्रिया. काला को लिखावट त्रुटि है...ऊर्दू में भूख नहीं भूक ही होता है...
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on January 4, 2018 at 9:57am

बेहतरीन मतले और मक़्ते के साथ बढ़िया ग़ज़ल के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब सलीम रज़ा 'रीवा' साहिब।

Comment by Shyam Narain Verma on January 4, 2018 at 9:35am
क्या बात है, बहुत उम्दा हार्दिक बधाई, सादर

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