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वक्त बदल रहा है,बचपन बदल रहा है,वरना पढने लिखने की उम्र में हाथ में पत्थर ना होते ।वर्तमान के हालात से रूबरू कराती कथा के लिये बधाई आद० कल्पना बहना ।
आद0 कल्पना भट्ट जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा का प्रयास आपका। मैं भी उस्मानी साहब से सहमत हूँ। इस प्रस्तुति पर आपको बधाई।
वाह। नये वर्ष की ज़ोरदार धमक बतौर तीखी लघुकथा। बापूजी को समकालीन बाप से जोड़ते हुए बहुत ही तीखा विचारोत्तेजक कटाक्ष। हार्दिक बधाई आदरणीया कल्पना भट्ट जी। मेरे विचार से अंतिम पंक्ति की आवश्यकता नहीं है। कुछ वाक्यांशों का शिल्प निखारा जा सकता है। सादर। नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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