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लिप्सा के परित्याग से खिलता आत्म प्रसून

दोहा/ ग़ज़ल

चाहत के तूफान में, उजड़े चैन सुकून
चिंता में जल कर हुआ, भस्म खुदी का खून

गीता में लिक्खा गया, राहत का मजमून
लिप्सा के परित्याग से, खिलता आत्म-प्रसून

संग्रह का जो रोग है, बढ़ता प्रतिपल दून
लोभ अग्नि में हे! मनुज, यूँ खुद को मत भून

सुख का एक उपाय बस, इच्छा करिए न्यून
बाकी मर्ज़ी आपकी, खटिए चारो जून

मनस वेदना के लिए, यह बढ़िया माजून
सो पंकज नें कर लिया, लेखन एक जुनून

मौलिक अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:04pm

आदरणीय विजय निकोर जी दोहे आपको पसंद आए, बहुत बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on February 5, 2018 at 5:03pm
आदरणीय महेंद्र जी सादर आभार
Comment by vijay nikore on January 18, 2018 at 8:40am

दोहे अच्छे लगे। हार्दिक बधाई।

Comment by Mahendra Kumar on January 17, 2018 at 7:51pm

अच्छा प्रयोग है आ. पंकज जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.

Comment by Samar kabeer on January 17, 2018 at 11:20am

जी,ठीक है ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2018 at 11:05am
आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, यह एक नया प्रयास है, ग़ज़ल नाम देना सही नहीं होगा, इसलिए इसे दोहा-ग़ज़ल नाम दिया है, मैं चाह रहा था इसे- दोजल या द्विजल कहना लेकिन शब्द का वास्तविक अर्थ क्या निकलेगा, इस बात का पूरा अंदाज़ा नहीं होने के कारण नहीं लिखा।
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2018 at 11:01am
आदरणीय अजय सर आपके सुझाव सर्वथा उपयोगी होते हैं, स्नेह यथावत बनाएं रखें, सादर प्रणाम
Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on January 17, 2018 at 11:01am
आदरणीय आरिफ सर सादर अभिवादन और हार्दिक आभार
Comment by Samar kabeer on January 17, 2018 at 10:58am

अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

आपने इस प्रस्तुति को 'दोहा/ग़ज़ल' का शीर्षक क्यों दिया,जबकि ये ख़ालिस दोहे हैं,और ग़ज़ल में सिर्फ़ मतले नहीं होते,शैर भी होते हैं जो इसमें नहीं हैं ।

Comment by Ajay Tiwari on January 16, 2018 at 5:45pm

आदरणीय पंकज जी, अच्छा प्रयोग है. हार्दिक बधाई.

मतले के मिसरों में रब्त कुछ कम है. आम तौर पर खुदी(अहं) के ख़त्म होने को चैन और सुकून का कारण माना जाता है चैन और सुकून के उजड़ने का कारण नहीं.

सादर 

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