दोहा/ ग़ज़ल
चाहत के तूफान में, उजड़े चैन सुकून
चिंता में जल कर हुआ, भस्म खुदी का खून
गीता में लिक्खा गया, राहत का मजमून
लिप्सा के परित्याग से, खिलता आत्म-प्रसून
संग्रह का जो रोग है, बढ़ता प्रतिपल दून
लोभ अग्नि में हे! मनुज, यूँ खुद को मत भून
सुख का एक उपाय बस, इच्छा करिए न्यून
बाकी मर्ज़ी आपकी, खटिए चारो जून
मनस वेदना के लिए, यह बढ़िया माजून
सो पंकज नें कर लिया, लेखन एक जुनून
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय विजय निकोर जी दोहे आपको पसंद आए, बहुत बहुत आभार
दोहे अच्छे लगे। हार्दिक बधाई।
अच्छा प्रयोग है आ. पंकज जी. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए. सादर.
जी,ठीक है ।
अज़ीज़म पंकज कुमार मिश्रा आदाब,अच्छे दोहे लिखे आपने ,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आपने इस प्रस्तुति को 'दोहा/ग़ज़ल' का शीर्षक क्यों दिया,जबकि ये ख़ालिस दोहे हैं,और ग़ज़ल में सिर्फ़ मतले नहीं होते,शैर भी होते हैं जो इसमें नहीं हैं ।
आदरणीय पंकज जी, अच्छा प्रयोग है. हार्दिक बधाई.
मतले के मिसरों में रब्त कुछ कम है. आम तौर पर खुदी(अहं) के ख़त्म होने को चैन और सुकून का कारण माना जाता है चैन और सुकून के उजड़ने का कारण नहीं.
सादर
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