हृदय की फुलवारी में
राग-बसंती छिड़ गया
अंग-प्रत्यंग प्रफुल्लित
आनंदित हो गया
चहुँदिश दिशा में
छा गया यौवन
लग गया बाग़ों में फिर से
सरसों , जूही , केतकी का मेला
चटखने लगी कमसिन कलियाँ
उन्हें भी प्रेम निमंत्रण मिलने लगा
मतवाले भँवरों का कारवाँ चला
देखो, कामदेव का जादू फिर चला ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।
Comment
रचना पर प्रतिक्रिया देकर मान बढ़ाने का बहुत-बहुत आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी ।
बहुत-बहुत आभार आदरणीत नरेंद्र सिंह जी ।
बसंत पर बहुत प्यारी रचना लिखी है बहुत बहुत बधाई आद० मोहम्मद आरिफ़ जी
सुन्दर कविता
बहुत-बहुत आभार आदरणीय मोहित मिश्रा जी ।
बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय तस्दीक़ अहमद साहब ।
बहुय-बहुत आभार आदरणीय सलीम रज़ा साहब ।
मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब ,बसंत ऋतु पर सुन्दर कविता हुई है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं।
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