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मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं (नवगीत 'राज')

मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं

कंठ चीर तरु सरकंडों के

अल्गोज़े की बीन बनी है

अंतड़ियों के बान पूरकर

तिलचट्टों ने खाट बुनी है

मजबूरी ने कोख में फ़ाके बोए हैं

 

लूट खसोट के दंगल भिड़तु

किसने लूटी किसकी जाई

बुक्का फाड़ देवियाँ रोती

सनी लहू में साँजी माई

कंधों पे संयम के मुर्दे ढोए हैं

 

छल के पैने नाखूनों से

देह खुरचते जात धरम की

मक्कारी की आरी लेकर

लाश बिछाते लाज शरम की

प्रश्न भरोसे की  आँखों से रोये हैं

 

रिश्तों की चिल्मों के भीतर

ओछेपन की आग भरी है

जिव्हा के पनघट के ऊपर

धरी डोलची जहर भरी है

काँव काँव में तेरे मेरे खोए हैं

 

गुड्डे गुडिया छुपम छुपाई

आट्टे बाट्टे लल्ला लोरी

गिट्टे कंचे इक्क्ल दुक्कल

गुल्ली डंडा डंडा डोली

कम्प्यूटर मोबाइल ने सब धोए हैं

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 8:45pm

आद० राम अवध जी ,आपका बहुत बहुत आभार .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 8:45pm

आद० मोहित मिश्रा जी ,आपको नवगीत पसंद आया दिल से बहुत आभारी हूँ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 8:44pm

आद० तेजवीर सिंह जी ,आपको ये नवगीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ रचना में छुपा मर्म व्यंग पाठक के दिल तक पहुँच रहे हैं इस बात की अतीव प्रसन्नता है बहुत बहुत आभार शुक्रिया .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on January 22, 2018 at 8:43pm

मोहतरम जनाब तस्दीक जी ,आपको ये नवगीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ रचना में छुपा मर्म व्यंग पाठक के दिल तक पहुँच रहे हैं इस बात की अतीव प्रसन्नता है बहुत बहुत आभार शुक्रिया .

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 22, 2018 at 7:51pm

बहुत शानदार नवगीत बधाई

Comment by TEJ VEER SINGH on January 22, 2018 at 12:05pm

हार्दिक बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी।आज के संदर्भ में मन को विचलित करता, एक कटु सत्य को उजागर करता, कमाल का गीत।मखमल के गद्दों पे गिरगिट सोए हैं|

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on January 22, 2018 at 9:57am

मुहतर्मा राजेश कुमारी साहिबा , आज कल के हालात पर सुन्दर नवगीत हुआ है ,मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें।

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