पहली दिल्ली यात्रा के दौरान गन्तव्य की ओर जाते समय टैक्सी इण्डिया गेट के नज़दीक़ पहुंची ही थी कि वहां दर्शकों की भीड़ देखकर उसने टैक्सी चालक से कहा - "यह तो इण्डिया गेट है न! ग़ज़ब की भीड़ है! देखने लायक ऐसा क्या है यहां? लोग तो फोटो भर उतार रहे हैं, सेल्फी ले रहे या खाने-पीने में भिड़े हुए हैं?"
"यह मॉडर्न देशप्रेम है साहब! शहीदों के नामों और कामों से कोई मतलब नहीं इन्हें! ये तो बस लोकेशन और गेटप्रेम है!" टैक्सी-चालक ने उसकी तरफ़ मुड़कर कहा -"वैसे आप कहां ठहरेंगे? आप कहें तो एक बढ़िया सी लॉज में ठहरवा दूं आपको!"
"बढ़िया जगह ही जा रहा हूं, जहां भाई-चारा और देश-प्रेम दिखता है और मिलता भी है!"
"कहां पर!" टैक्सी-चालक ने चौंककर पूछा।
"मैं यहां के मशहूर गुरूद्वारे की बात कर रहा हूं!"
"लेकिन आप पंजाबी या सिख तो नहीं लग रहे! कौन जात हो आप?"
"हिन्दुस्तानी मुसलमान हूं भाई! सुना है कि गेट से ही प्रेम बंटने लगता है यहां।" गुरूद्वारे पहुंचने पर उसने कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शाहज़ाद जी,
बहुत खूब...
कम शब्दों में बहुत ही मार्मिक रचना। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
हमारे देश के अल्प संख्यकों में सिख समाज सबसे ज़ियादा शांतिप्रिय है । देश विष वमन का काम यह वर्ग कभी नहीं करता । गुरूद्वारे में सबके लिए लंगर बँटता है । सर पर कपड़ा डालकर कोई भी मत्था टेक सकता है । सिख समाज सांप्रदायिक सद्भावना की सबसे बड़ी मिसाल हमारे देश में है । यह समाज देश की रक्षा में सदियों से सरहद पर अपनी क़ुर्बानी देता आया है । आज देश में कुछ तथाकथित कुकुरमुत्ते देशभक्ति का स्वांग रच रहे हैं । उन दुष्टों को इस समाज से सबक़ लेना चाहिए ।। बहुत ही संदेशप्रद लघुकथा । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।हमारे देश की भाईचारे और सांप्रदायिक सदभाव की प्रथा की अच्छी रूप रेखा खींची है मगर आजकल यह माहौल बिगड़ने लगा है।बेहतरीन लघुकथा।
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