गरम कड़ाही में वे नाच रहे थे। नहीं, उन्हें नचाया जा रहा था। उबलते तेल में एक झारे से उन्हें पलटा जा रहा था। रंग बदलते ही उन्हें कड़ाही से बाहर कर थाली में और फिर दीवाने ग्राहकों को दोनों में चटनी के साथ पेश किया जा रहा था। उनमें से एक युवक की निगाहें कभी कड़ाही में, कभी हाथों में थामे गये 'दोनों' पर, तो कभी ग्राहकों के चलते जबड़ों पर जा रहीं थीं, तो कभी झारा चलाते युवा पकोड़ेवाले पर।
"यूं क्या देख रहे हो? क्या सोच रहे हो भाई? आपको कितने के चाहिए?" कुछ पकोड़े थाली में उड़ेलते हुए उस पकोड़वाले ने मुस्करा कर कहा।
"बेटा, न तो पकोड़े बनाने और बेचने में शरम की बात है और न ही पकोड़े खाने में! लो और खाओ तुम भी!" पास खड़े एक बुज़ुर्ग ने मिर्ची वाला पकोड़ा खाते हुए कहा।
"सब तो खा रहे हैं हमें तल-तल के!" उबलते विचारों से गरम होते हुए उस युवक ने कहा।
"क्या मतलब?" उसके एक साथी ने पूछा।
"मतलब यह कि मैं... मैं 'पकोड़ा' हूं और तू भी और हम जैसे ये सभी बेरोज़गार भी पकोड़े ही हैं!" उसने साथी के हाथ के दोने को दूर फेंकते हुए कहा- "झारे उनके हाथों में है!"
"किन के हाथों में?"
" नेताओं, सरकारों, रईसों और कारपोरेट घरानों के हाथों में!" उसने लगभग चीखते हुए कहा।
"लेकिन वे सब भी पकोड़े ही तो हैं अपने मुल्क में बेटा!" तसल्ली देने की कोशिश में उस बुज़ुर्ग ने उस परेशान युवक की ओर देख कर मुस्कराते हुए कहा।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना पटल पर उपस्थित होकर अपनी राय से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब वीरेंद्र वीर मेहता जी।
भाई शेख शहज़ाद उस्मानी जी, सुन्दर रचना बनी है सामयिक विषय के अनुरूप.... हालांकि ऐसी रचनाओं की काल अवधि बहुत अल्प होती है लेकिन फिर भी पकोड़ा बयानबाज़ी को आपने प्रयोग करके अच्छा कथानक बना दिया। बधाई स्वीकार करें भाई जी.
अपने विचारों और प्रतिक्रिया से अवगत कराने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीता कसार जी, आदरणीय तेजवीर सिंह साहिब, आदरणीय मोहम्मद आरिफ़ साहिब और आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब।
पकौड़ा राजनीति पर आधारित कटु व्यंग्य किया है आपने बधाई कथा के लिये आद० शहज़ाद भाई ।
आद0 शेख शहज़ाद उस्मानी साहब सादर अभिवादन। बढिया लघुकथा। अच्छे दिनों की सौगात पकौड़े के साथ..... इस प्रस्तुति पर मेरी बधाई स्वीकार कीजिये
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी। पकोड़ा पुराण पर बेहतरीन विश्लेषण करती उत्तम लघुकथा।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही बेहतरीन , सशक्त और सामयिक लघुकथा । पकोड़ा बयानबाज़ी को आपने तत्काल अपनी लघुकथा का कथानक बना दिया । वाकई यह कमाल की बात है । जागरूक रचनाकार की यही पहचान होती है । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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