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कविता--नए संस्करण

अब पैमाने
तय किए जा रहे हैं
राष्ट्रीयता के
ब्रेन मेपिंग और नार्को टेस्ट के ज़रिए
उगलवाया जाएगा राष्ट्रीयता का अमृत्व
भूल से स्वप्न में भी
गांधी का चश्मा मत देख लेना
चश्में सारे सरकार बाँटेगी
भूख बाँटने के काम में भी वह दक्ष हो गई है
जंतर-मंतर पर अनशन
भूख हड़ताल की पसलियाँ बाहर निकल आई है
संसद में भेड़िये घूस आए हैं
नोच डालना चाहते हैं संविधान की प्रतियों को
बहुत भूखे हैं
खाना चाहते हैं सारी संसदीय मर्यादा को
" रघुपति राघव राजा राम " गाना मना है
इस भजन का नया संस्करण तैयार हो रहा है
निठल्ले दूतावासों में शीघ्र
एक-एक चरखा भेजा जा रहा है
ख़बरदार ! अगर आवाज़ उठाई
भूख-ग़रीबी , बेरोज़गारी के ख़िलाफ
तुम्हारी ज़ुबान पर रासुका लगा दी जाएगी
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 7:09pm

दिली शुक्रिया आदरणीय तस्दीक अहमद जी ।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on February 12, 2018 at 5:26pm

मुहतरम जनाब आरिफ़ साहिब , आज के हालात पर ज़बरदस्त रोशनी डालती सुंदर रचना
हुई है , मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएँ|

Comment by Mohammed Arif on February 12, 2018 at 11:02am

कविता के मर्म को समझने की आपकी ग़ज़ब की क्षमता है । बहुत-बहुत आभार आदरणीय सोमेश कुमार जी ।

Comment by somesh kumar on February 12, 2018 at 10:19am
समय को कितनी सटीकता से पकड़ा है भाई जी आपने

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