तुम्हारी कसम....
हिज़्र की रातों में
तन्हा बरसातों में
खामोश बातों में
नशीली मुलाकातों में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
चांदनी के शबाब में
पलकों के ख्वाब में
प्यालों की शराब में
अर्श के माहताब में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
ख्यालों की बाहों में
बेकरार निगाहों में
गुलों की अदाओं में
आफ़ताबी शुआओं में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
साँसों के ऐतबार में
आती हुई बहार में
मिलन के करार में
वस्ल के इंतज़ार में
तुम्हारी कसम
सिर्फ़
तुम ही तुम हो
(शुआओं= किरणें )
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी सृजन के भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया । निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय narendrasinh chauhan जी सृजन के भावों को मान देने का तहे दिल से शुक्रिया । निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया । निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय नादिर खान साहिब सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया । निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय रक्षिता सिंह जी सृजन के भावों को आत्मीय मान देने का तहे दिल से शुक्रिया । निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आदरणीय मो.आरिफ साहिब आदाब ... सृजन को इस दिलकश अंदाज़ से इज़्ज़त बख़्शने का दिल से शुक्रिया सर। निजी कारणों से आभार व्यक्त करने में विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।
आ. भाई सुशील जी, बेहतरीन रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय ,खूब सुन्दर रचना
वाह आदरणीय सुशील बहुतखूब लिखा..और आदरणीय आरिफ जी ने खूब लिखा..वाह
उम्दा ख़याल खूबसूरत नक्काशी .... बहुत बधाई आदरणीय सुशील सरना जी
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