गीत
भावना में प्रेम का रस घोल प्यारे।
प्रेम जीवन में बड़ा अनमोल प्यारे।
भावना में.........
शब्द-शर मुख से निकल कर लौटते कब?
घाव ये गहरे करें हिय में लगें जब।
कर न दें आहत किसी को शब्द तेरे,
मृृदु मधुुुर मकरन्द वाणी बोल प्यारे।
भावना में ........
मत बड़ा छोटा किसी को मान जग में।
काम आ जाए भला कब कौन मग में?
स्नेह का सम्बन्ध ही सबसे उचित है,
तथ्य यह मन की तुला में तोल प्यारे।
भावना में........
क्यों मनुज ही, पशु-विहग को भी क्षुधा है।
स्नेह तो सबके लिए अनुपम सुधा है।
स्नेह के बस में सकल जग जगतपति भी,
स्नेह से हिय स्नेहनिधि का मोल प्यारे।
भावना में..........
है मनुज तू मनुजता का मान भी रख।
बंधु-बांधव के लिये सम्मान भी रख।
सौख्य देकर सौख्य ही प्रतिफल मिले औ'-
दुख मिटेंगे द्वार सुख के खोल प्यारे।
भावना में.........
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद भाई लक्ष्मण धामी जी
आ. भाई रामबली जी, सुंदर गीत हुआ है हार्दिक बधाई ।
हृदय से आभार आदरणीय बृजेश कुमार जी
अनुपम सरस रचना हुई आदरणीय..सादर
सादर आभार आदरणीया रक्षिता सिंह जी
आदरणीय आरिफ़ जी हृदय से धन्यवाद
आदरणीय रामबली जी ,
प्रेम व स्नेह पर केन्द्रित बहुत ही सुन्दर गीत।
हार्दिक बधाई।
आदरणीय राम बली गुप्ता जी आदाब,
सुंदर प्रेम की भावना से ओतप्रोत गीत । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
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