ग़ज़ल
2122 1122 1122 22
बन के' सूरज सा' जमाने में' निकलते रहिये
हर अँधेरे को' उजाले मे' बदलते रहिये
जिंदगी एक सफर खुशियों' भरा हो अपना
यूँ ही बस आप मेरे साथ तो चलते रहिये
दिल के' मन्दिर में उजाले की' वज़ह आप ही हैं
अब तो इस दिल में' सदा दीप सा' जलते रहिये
मैं जो' हूँ साथ जमाने से' भला डर कैसा
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिये
मेरे' हर गीत-ग़ज़ल-नज़्म-तरानों में' यूँ ही
बन के' नित शब्द नये प्यार के ढलते रहिये
दिल की बगिया में बहारों के सुमन मुस्काएँ
इसमें बस आप सुबह शाम टहलते रहिये
लूटते चैनो-अमन जो भी वतन का साहिब!
ऐसे' साँपो के' उठे फन को' कुचलते रहिये
रचना-रामबली गुप्ता
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय रामबली जी, अच्छे अशआर हुए हैं. हार्दिक बधाई.
आ. भाई रामबली जी, अच्छी गजल हुयी है । हार्दिक बधायी ।
आपसे टेलीफोन पर बात करने के बाद अब ये शैर यूँ कर सकते हैं:-
"ज़िन्दगी का ये सफ़र ख़ुशियों से भर जायेगा
मेरे हमराह रह-ए-इश्क़ पे चलते रहिये "
'जिंदगी एक सफर खुशियों' भरा हो अपना
यूँ ही बस आप मेरे साथ तो चलते रहिये'
इस शैर को यूँ कर सकते हैं:-
'ज़िन्दगी का ये सफ़र ख़ुशियों भरा हो अपना
यूँ ही बस आप मेरे साथ में चलते रहिये'
'मैं जो' हूँ साथ जमाने से' भला डर कैसा'
इस मिसरे को यूँ कर सकते हैं:-
'साथ हूँ मैं तो ज़माने का भला डर कैसा'
'इसमें बस आप सुबह शाम टहलते रहिये'
इस मिसरे में सहीह शब्द है "सुब्ह",इसे यूँ कर सकते हैं :-
'सुब्ह से शाम तलक आप टहलते रहिये'
'लूटते चैनो-अमन जो भी वतन का साहिब!
ऐसे' साँपो के' उठे फन को' कुचलते रहिये'
इस शैर के ऊला मिसरे में सहीह शब्द "अम्न" है, इसे यूँ कर सकते हैं:-
'लूटते अम्न वतन का जो हमेशा साहिब'
और सानी मिसरे में 'साँपो' को "साँपों" कर लें ।
अच्छी ग़ज़ल कही आदरणीय...
सादर प्रणाम आदरणीय समर भाई साहब। कौन-कौन से मिसरे कमजोर हैं थोड़ा इंगित करें और संशोधन के लिए सुझाव दें। बेहतर की हमेशा गुंजाइश है। मैं आपके कहे अनुसार प्रयास करूँगा।सादर
सादर आभार आदरणीय भाई बसंत कुमार जी
आदरणीय रामबली गुप्ता जी, शुभ प्रभात, बहुत खूब गजल कही आपने
जनाब रामबली गुप्ता जी आदाब,ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।
कुछ मिसरों पर थोड़ा और समय देते तो ग़ज़ल और निखर जाती ।
हृदय से आभार आदरणीय मित्र सुरेन्द्रनाथ सिंह जी
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