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आंधियों के बाद भी अक्सर मिले ।।
फिर किसी दरिया में हम बहकर मिले ।।
हौसले ने आसमाँ तब छू लिया ।
आप मुझ से जब कभी हंस कर मिले ।।
हक़ जो मांगा इस ज़माने से यहां ।
दोस्तों के हाथ में ख़ंजर मिले ।।
लूट की थीं दौलतें जिसमें लगीं ।
वो मकां अक्सर हमें जर्जर मिले ।।
क्या गले मिलते भी हम तुमसे सनम ।
प्यार के बदले बहुत पत्थर मिले ।।
ऐ खुदा इतनी दुआ कर दे अता ।
तू हमारी रूह के अंदर मिले ।।
खुद चले आना हमारी बज़्म में ।
वक्त जब भी आप को पल भर मिले ।।
और क्या दे जिंदगी के बाद वो ।
आप भी कब मुतमइन होकर मिले ।।
जीत लेंगे जंग उम्मीदों से हम।
क्या हुआ हालात जो बदतर मिले ।।
जब पता पूछा किसी से हुस्न का ।
घर बताते आपका रहबर मिले ।।
वह ग़ज़ल कहने लगी है इश्क़ में ।
अब तो उसकी शायरी को पर मिले ।।
--नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ0 बृजेश कुमार जी सादर आभार
बढ़िया ग़ज़ल कही है आदरणीय त्रिपाठी जी..
आ0 हर्ष महाजन साहब सादर आभार
आ0 कबीर सर सादर नमन के साथ आभार । तुरन्त आडिट करता हूँ ।
आदरणीय नवीन मनी त्रिपाठी जी एक अच्छी पेशकश के लिए बधाई स्वीकार करें । जैसा आ0 आरिफ जी ने कहा ऊनि तरफ ध्यान देंगे तो ग़ज़ल पढ़ने वालों को और भी मज़ा आएगा । बहुत बेहतरीन अश'आर सजाए हैं आपने अपनी इस ग़ज़ल में । दिली दाद कबूल कीजियेगा ।
सादर ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
2रे शैर के।ऊला में 'आसमा' को "आसमाँ" कर लें ।
'वक़्त जब तुमको कोई शब भर मिले'
इस मिसरे को यूँ कर लें :-
'वक़्त जब भी आपको पल भर मिले'
10वें शैर में 'पूंछा' को "पूछा" करें,पहले भी कई बार बता चुका हूँ ।
आदरणीय नवी मणि त्रिपाठी जी आदाब,
बहुत भी उम्दा ग़ज़ल । अश'आरों से सुसज्जित । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करें । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं ।
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