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किसने किया तुझसे मना-गजल

२२१२ २२१२ 

किसने किया तुझसे मना

कर प्रेम की आराधना

 

चारों तरफ ही प्रेम की

मौजूद है सम्भावना

 

हों झुर्रियाँ जिस हाथ में

मौका मिले तो थामना

 

करना किसी की भी नहीं

बिन बात के आलोचना  

 

माहौल है, अब कलयुगी

होती न सच की साधना

 

कोई हँसे फुटपाथ पर

कोई महल में अनमना

 

आसान कब है जिदंगी

है मुश्किलों से सामना

"मौलिक एवं अप्रकाशित" 

@ बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर

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Comment by Harash Mahajan on March 25, 2018 at 11:48am

आदरणीय बसंत जी बहुत ही उम्दा पेशकश ।

दाद कबूल कीजियेगा ।

सादर ।

Comment by Ajay Tiwari on March 25, 2018 at 11:44am

आदरणीय बसंत जी, छोटी बहर में बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई.

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:33am

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आभार आपका 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:32am

आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आभार आपका शंका समाधान के लिए 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 11:32am

आदरणीय  Tasdiq Ahmed Khan जी आपकी प्रतिक्रिया का ह्रदय से आभार, काफिये हिंदी के अनुसार  ही लिए हैं मैंने. सादर 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 25, 2018 at 9:49am

आदरणीय शर्मा जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2018 at 9:14am

आ. तस्दीक साहब,
आराधना, संभावना आलोचना..सभी हिंदी के तुकांत हैं ...
सादर 

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on March 25, 2018 at 9:11am

जनाब बसंत कुमार साहिब , छोटी बह्र में अच्छी ग़ज़ल हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें । मना क़ाफ़िया हिंदी के हिसाब से सही मगर उर्दू के हिसाब से ग़लत है ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 8:50am

 आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया एवं सुझाव का ह्रदय से आभार, सुधार लेता हूँ. 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on March 25, 2018 at 8:49am

आदरणीय Mohammed Arif  जी दिल से शुक्रिया आपका 

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