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एक नवीनतम अतुकांत रचना

मैं तो सदा उसकी ही रहूंगी,
मुझे उसी की रहना है बस
इससे क्या
कि
मेरे जिस्म की मासूमी पर,
उसने दर्द के दाग लिखे हैं ।
मेरी सुर्ख आंखों का काजल ,
उसके जुर्म बह निकला है
और चेहरे की रंगत है
उसके दिए हुए निशान
अंतिम लफ्ज़ से उसके नाम के,
बस मेरी पहचान बची है
मैंने उसकी खातिर अपना,
चेहरा सब से छुपा लिया है

मैं फिर भी उसकी ही हूं
जबकि
वो जब चाहे मुझको अपनी,
जीस्त से रुखसत कर सकता है
वो जब चाहे मेरी देह को,
अंगारों में धर सकता है
मुझे बनाकर अपनी आबरु,
उसने अंधेरा उढा दिया है
अपने लफ्जों से वो जब चाहे,
मुझको को नंगा कर सकता है।

मैं उसकी आखिर क्योंकर हूँ
क्योंकि
मेरे जिस्म के सन्नाटे पर सबसे पहली आहट है वो,
मैंने कुबूल किया है उसको जान समझकर सारी बातें
सारे जग को बना साक्षी ,
पिता ने मुझ को दान दिया है
वह मेरे जीवन से बंधा है,
वह मेरे बच्चों का पिता है।
मेरी जरूरत के सब ताले
उसकी चाबी से बंद पड़े हैं।
और जहां के दरवाजे सब
मेरी खातिर बंद पड़े हैं
मेरी शोहरत,
मेरी इज्जत ,
मेरी दौलत ,
सब कुछ है वो
उसके लिए हर दर्द में भी
मेरे जीवन का आधार छुपा है
जीना है
तो जीना होगा
मुझको उसकी औरत बनकर

किसी की बेटी
किसी की बहन
किसी की दोस्त
का जीवन
मुझ को कभी स्वीकार नहीं है

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by मनोज अहसास on March 31, 2018 at 6:00pm

आदरणीय समर कबीर साहब

आदणीय शेख शहजाद उस्मानी साहब

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज साहब

आदरणीय सुरेंद्र नाथ सिंह कुशक्षत्रप

आदरणीय सोमेश कुमार

कविता पर आप सब की उपस्थिति उत्साह वर्धन आपके आशीर्वाद के लिए हार्दिक आभार

सादर

Comment by somesh kumar on March 30, 2018 at 10:54am

मर्मान्तक रचना है |विवाहिता स्त्री की बेबसी को बड़े सटीक शब्दों से अभिव्यक्त किया है |

रचना पर बधाई,भाई |

Comment by नाथ सोनांचली on March 30, 2018 at 2:47am

आद0 मनोज जी सादर नमन। बढिया अतुकांत लिखा आपने। बधाई इस प्रस्तुति पर।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 29, 2018 at 8:00pm

बहुत उत्तम भावपूर्ण रचना आदरणीय..

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on March 28, 2018 at 8:21pm

//मेरे जिस्म के सन्नाटे पर सबसे पहली आहट है वो,/मैंने कुबूल किया है उसको जान समझकर सारी बातें /सारे जग को बना साक्षी,/पिता ने मुझ को दान दिया है /वह मेरे जीवन से बंधा है,//..... वाह ... बहुत कुछ कह दिया है आपसे इस रचना में‌। बाकी पाठक समझ रहे हैं। हार्दिक बधाई इस अतुकान्त कविता के लिए आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी।

Comment by Samar kabeer on March 28, 2018 at 12:13pm

जनाब मनोज कुमार अहसास जी आदाब,सुंदर भाव लिए अच्छी अतुकान्त कविता लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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