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मेरी चाहतें सब दहकने से पहले ।।
चले आइये सर पटकने पहले ।।
नहीं भूलती वो सुलगती सी रातें ।
मुहब्बत का सूरज चमकने से पहले ।।
सुना हूँ यहाँ हुस्न वालों की बस्ती।
मगर वो मिले कब भटकने से पहले ।।
है ख्वाहिश यही तुझको जी भर के देखूँ ।
क़ज़ा पर पलक के झपकने से पहले ।।
बहुत कोशिशें गुफ्तगू की हैं उनकी ।
अभी सर से चिलमन सरकने से पहले ।।
गुलिस्तां पे है आंधियों का सितम यह ।
गिरे गुल जमीं पर महकने से पहले ।।
यहां मैकदे में तिजारत बहुत है ।
वो दिल मांगते हैं बहकने से पहले ।।
नए जाल में अब परिंदे फँसा कर ।
सजा दे रहे वो चहकने से पहले ।।
मयस्सर हुई ही नहीं चन्द खुशियां ।
मेरे आसुओं के छलकने से पहले ।।
--- नवीन मणि त्रिपाठी।
मौलिक अ प्रकाशित
Comment
आदरणीय त्रिपाठी जी अच्छी ग़ज़ल कही है..बधाई
आ0 मुहम्मद आरिफ साहब सादर आभार ।
आ0 तेजवीर सिंह साहब हार्दिक आभार ।
आदरणीय कबीर सर सादर नमन ।
जनाब नवीन जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन जी। बेहतरीन गज़ल।
है ख्वाहिश यही तुझको जी भर के देखूँ ।
क़ज़ा पर पलक के झपकने से पहले ।।
वाह! वाह!! बहुत ही प्यारी ग़ज़ल हुई है । हर मुझे पसंद है । शे'र दर शे'र दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल करेन आदरणीय नवीन मणि जी ।
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