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रूह से मेरे अब तक जुदा तू नहीं ।
बात सच है सनम बेवफा तू नहीं ।।1
कर रहा एक मुद्दत से सज़दा तेरा ।
कह दिया किसने तुझको खुदा तू नहीं ।।2
जिंदगी से मेरे जा रहा है कहाँ ।
इस तरह अब नजर से गिरा तू नहीं ।।3
मेरे कूचे से निकला न कर बेसबब ।
दिल हमारा अभी से जला तू नहीं ।।4
वार कर मत निगाहों से मुझ पर अभी ।
सब्र मेरा यहाँ आजमा तू नहीं ।।5
लोग अनजान हैं कत्ल के राज से ।
सर से मेरे कफ़न अब उठा तू नहीं ।।6
दर्द ही दर्द तुझसे मिला है मुझे ।
क्या बता दूं मेरा हौसला तू नहीं ।।7
खत में सारी मुहब्बत बयां थी मेरी ।
एक मिसरा मगर क्यूँ पढा तू नहीं ।।8
सच से वाकिफ रहू रूबरू तू रहे ।
इस तरह से बना आइना तू नहीं ।।9
दे दिया दिल तुझे बेसबब ही सनम ।
कैसे कह दूं कि मेरी ख़ता तू नहीं ।।10
हम भी इजहार करते मुहब्बत बहुत।
एक मुद्दत से हमको मिला तू नहीं ।।11
यूँ ही बढ़ते रहेंगे हमारे कदम ।
जो मुखालिफ चले वो हवा तू नहीं ।।12
प्यास बुझ जाएगी वक्त की बात है ।
शह्र में एक ही मैकदा तू नहीं ।।13
खत में सारी मुहब्बत बयां थी मेरी ।
एक मिसरा मगर क्यूँ पढा तू नहीं ।।14
क्या निभाएगा अब जिंदगी का सफर ।
दो कदम साथ मेरे चला तू नही। 15
बस अना ही अना पास रह जायेगी ।
तिश्नगी पर मेरी इल्तिजा तू नहीं ।।16
दर्द ही दर्द तुझसे मिला है मुझे ।
क्या बता दूं मेरा हौसला तू नहीं ।।17
भीगने की तमन्ना अधूरी रही ।
जो भिगा दे मुझे वो घटा तू नहीं ।।18
-नवीन मणि त्रिपाठी मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, हार्दिक बधाई ।
इस खूबसूरत रचना के लिये दिली दाद कुबूल करें |
बहुत खूब
आ0 कबीर सर बिल्कुल सहमत हूँ आपकी बात से ।
सादर नमन सर । हार्दिक आभार
मतले के ऊला में 'मेरे' को "मेरी" कर लें 'रूह' स्त्रीलिंग है ।
2रे शैर के ऊला में 'तेरा' को "तुझे" कर लें ।
4थे शैर में शुतरगुर्बा दोष है ।
18वें के सानी में 'भिगादे' को "भिगो दे" कर लें ।
कुछ अशआर आपने दो बार लिख डियेहैं ।
कुछ अशआर में रदीफ़ क़ाफिये में ताल मेल नहीं है ,अशआर कम कहें,सोच समझ कर कहें,भर्ती के अशआर से बचें ।
जनाब नवीन मणि त्रिपाठी जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
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