फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
मेरी सारी वफ़ा ओबीओ के लिये
काम करता सदा ओबीओ के लिये
दिल यही चाहता है मेरा दोस्तो
जान करदूँ फ़िदा ओबीओ के लिये
आठ क्या,आठ सो साल क़ाइम रहे
है यही इक दुआ ओबीओ के लिये
मेरे दिल में कई साल से दोस्तो
जल रहा इक दिया ओबीओ के लिये
सुब्ह से शाम तक,शाम से सुब्ह तक
इज़्न सबको दिया ओबीओ के लिये
वक़्त थोड़ा सा यारो निकाला करो
है मेरी इल्तिजा ओबीओ के लिये
दोस्तो ग़ौर करना मेरी बात पर
मैंने सब कह दिया ओबीओ के लिये
ऐसा महसूस होता है रब ने "समर"
मुझको पैदा किया ओबीओ के लिये
'समर कबीर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
बहुत ख़ूब आदरणीय समर सर,
OBO के लिए इन पंक्तियों से मंच गौरवान्वित हुआ है ..
सादर
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब,आमीन !
ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब अजय तिवारी साहिब आदाब,आमीन !
आपको ग़ज़ल पसन्द आई लिखना सार्थक हुआ,रही समर्पण की बात,तो मेरी दिली ख़्वाहिश है कि ओबीओ परिवार का हर सदस्य इसी समर्पण की राह पर चले,कहते हैं किसी को सही रास्ता उसी वक़्त आप दिखा सकते हैं जब आप ख़ुद उस पर चलते हों ।
सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
आपकी निष्ठा और समर्पण का आईना है ये ग़ज़ल..बेहतरीन आदरणीय..
आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब ... ओ बी ओ की शान में कही गयी इस बेहतरीन ग़ज़ल के तहे दिल से शुक्रिया। आपका समर्पण वंदनीय है। आपको इस अवसर पर हार्दिक बधाई। ख़ुदा इसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगाए।
आदरणीय समर साहब,
यह ग़ज़ल भी ओबोओ के प्रति आप के असाधारण समर्पण का आईना है जिसके हम सब प्रशंसक है. इस समर्पण की उम्र अभी कम से कम सौ वर्ष और लम्बी हो. हार्दिक बधाई.
जनाब गणेश जी "बाग़ी" साहिब आदाब, आमीन ! आपकी प्रतिक्रया पाकर मुग्ध हूँ,ओबीओ को मैं सिर्फ़ ज़बान से नहीं दिल से अपना परिवार मानता हूँ,और इस के लिए मैं जो भी थोड़ा बहुत करता हूँ अपना फ़र्ज़ समझ कर ही करता हूँ,और चाहता हूँ कि इस फ़र्ज़ को परिवार का हर सदस्य समझे,लेकिन एक छोटा सा शब्द बोल कर सब आसानी से अपने फ़र्ज़ से बच निकलते हैं, और वो शब्द है "व्यस्तता",लेकिन में देखता हूँ कि वही लोग जो ये शब्द बोलते हैं,मुझे दूसरी जगह सक्रिय नज़र आते हैं,मैं अक्सर इन लोगों को फ़ोन करके अहसास दिलाता रहता हूँ । ख़ैर,
ग़ज़ल में शिर्कत,सुख़न नवाज़ी और आपकी दुआओं के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब भाई विजय निकोर जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया,ओबीओ ज़िंदाबाद ।
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