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स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता-----ग़ज़ल

212 212 212 212

स्वार्थ नें राष्ट्र की है सजाई चिता

जाति की अग्नि से चिट चिटाई चिता

भारती माँ तड़प कर कराहे सुनो

पूछती जीते जी क्यूँ सजाई चिता?

प्रीत के व्योम पर द्वेष धूम्राक्ष है

लोभियों नें वतन की जलाई चिता

राजगद्दी के लोभी हैं शामिल सभी

पूछिए मत कि किसनें लगाई चिता?

आग है जो लगी आप जल जाएंगे

बढ़ के आगे न यदि जो बुझाई चिता

मौलिक अप्रकाशित

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Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on May 15, 2018 at 5:57pm

आदरणीय नवीन सर सादर आभार

Comment by Naveen Mani Tripathi on April 17, 2018 at 9:50pm

वाह क्या खूब लिखा । हार्दिक बधाई आदरणीय ।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 8, 2018 at 1:51pm

आदरणीय ब्रजेश जी हार्दिक आभार

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 1:40pm

बहुत ही खूब ग़ज़ल कही है आदरणीय..सादर

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 6, 2018 at 9:02am

आदरणीय रामअवध जी आपका सुझाव वास्तव में अच्छा है, सादर आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 6, 2018 at 9:02am

आदरणीय वसन्त सर बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 6, 2018 at 9:01am

आदरणीय बाऊजी सादर प्रणाम, सुझाव के अनुरूप प्रयास होगा।

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 6, 2018 at 9:01am

आदरणीय तेजवीर सर बहुत बहुत आभार

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on April 6, 2018 at 9:01am

आदरणीय लक्ष्मण सर बहुत आभार

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on April 6, 2018 at 5:06am
आदर्णीय पंकज कुमार मिश्रा जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है वर्तमान माहौल पर अच्छे शेर कहे हैं। बधाई । मेरे विचार से अन्तिम शेर में यदि
'आग है जो लगी देश जल जायेगा, कर लिया जाये तो शेर में व्यापकता आ सकती है।सादर

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