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हो सके तो वन बचा लो  -नवगीत

हो सके तो वन बचा लो  

 

दे रहे जीवन सभी को,

खेत, वन, उपवन सजा लो.

हैं जरूरी जिन्दगी को,

हो सके तो वन बचा लो.  

 

हो चुके हैं, मत करो इन,

पर्वतों को और नंगा.

ध्यान रखना है हमें अब, 

और मैली हो न गंगा,

 

धो चुके तन किन्तु मन का,

कलुष तो उसमें न डालो. ......हो सके तो वन बचा लो.

 

बात पानी की करें क्या,

रेत भी लूटी नदी की.

मीन अब इतिहास बनती,

दिख रही है नव सदी की.

 

मृत न झरने हों कहीं पर,

जो बचा है जल सँभालो.......हो सके तो वन बचा लो.

 

वृक्ष कोई भी प्रगति की,

राह का काँटा नहीं है.

सत्य यह है, दुख किसी ने,

पेड़ का बाँटा नहीं है.

 

बात तब है, पेड़ कोई,

एक काटो सौ लगा लो.......हो सके तो वन बचा लो.

"मौलिक एवं अप्रकाशित "

बसंत कुमार शर्मा, जबलपुर 

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2018 at 4:08pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 16, 2018 at 4:07pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by नाथ सोनांचली on April 11, 2018 at 5:08am

आद0 बसन्त कुमार नई सादर नमन। बहुत बढ़िया बात कही आपने नवगीत के माध्यम से। बहुत बहुत बधाई सम्प्रेषित है। 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2018 at 1:24pm

आ. भाई बसंत जी, बेहतरीन गीत हुआ है । हार्दिक बधाई ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 5:39pm

आदरणीय Dr Ashutosh Mishra जी आपका दिल से शुक्रिया 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 9, 2018 at 5:23pm

आदरणीय बसंत जी सार्थक सन्देश देते इस शानदार गीत के लिए तहे दिल बधाई स्वीकार करें सादर 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:15am

आदरणीय बृजेश कुमार 'ब्रज' जी आपका तहे दिल से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on April 9, 2018 at 10:14am

आदरणीय Samar kabeer जी आपके स्नेह को सादर नमन 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 8, 2018 at 9:41pm

आदरणीय शर्मा जी बहुत सुन्दर और सरस रचना..

Comment by Samar kabeer on April 8, 2018 at 3:22pm

जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब,अच्छा नवगीत लिखा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

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