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इतने बढ़िया शब्दों में मेरी हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब विजय निकोरे साहिब और जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।
जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब ,दिल की गहराइयों को छूती सुन्दर लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।
आपकी यह लघु कथा पढ़ी.. सच हैरान रह गया कि कैसे आपने यथार्थ को इतने कम कम शब्दों में प्रस्तुत किया है। हार्दिक बधाई इस रचना पर, आदरणीय शैख शहज़ाद उस्मानी जी।
बिल्कुल सही कहा आप सभी ने। रचना पर समय देकर इसकी गहराई तक जाकर अनुमोदन कर अपने विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब।
बिल्कुल सही कहा आप सभी ने। रचना पर समय देकर इसकी गहराई तक जाकर अनुमोदन कर अपने विचार साझा करने और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीया नीलम उपाध्याय जी, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब तेजवीर सिंह साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब और जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब।
//एक जरूरतमन्द की जरूरत देखने-सुनने का समय किसी के पास नहीं है// ...
//बेबस लाचार और भूखों का एकमात्र सहारा तो बस नीली छतरी वाला ही है । भाषण देने वाले ..भूख-ग़रीबी का तांडव देखते हैं ।//...//समर्थ लोग भी केवल बातों से ही लोगों को बहलाते रहते हैं
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत ख़ूब वाह, बहुत उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही ताज़गीपूर्ण कथानक । बेबस लाचार और भूखों का एकमात्र सहारा तो बस नीली छतरी वाला ही है । भाषण देने वाले हरामी-कमीने बराबर राशन भी नहीं देते हैं । भूख-ग़रीबी का तांडव देखते हैं । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें इस शानदार-दमदार लघुकथा के लिए ।
बहुत बढ़िया लघुकथा आदरणीय, हार्दिक बधाई स्वीकारें |
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी।बेहतरीन लघुकथा। गरीब और कमजोर तबके के प्रति समाज में दिन प्रति दिन बढ़ती उदासीनता का सटीक वर्णन।समर्थ लोग भी केवल बातों से ही लोगों को बहलाते रहते हैं।
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