For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढाक के तीन पात (लघुकथा)

चुनाव नतीज़ों के साथ ही एक तरफ़ 'जीत' के जश्न हैं तो दूसरी तरफ़ 'हार' में छिपी प्रोत्साहक 'जीत' के जश्न हैं! जीते हुओं के चेहरों पर ' वैसी' मुस्काने नहीं हैं, जो असली में होती हैं! हारकर भी 'जीत' महसूस करने वालों के चेहरों पर कुछ अज़ीब सी मुस्कानें हैं! आम चुनावों में  विजेता दलों के संगठन और उसे अच्छी टक्कर देने वाला, नेस्तनाबूद माना जाने वाला इकलौता विरोधी संगठन, दोनों के ख़ास नेताओं के समक्ष ढेरों प्रश्न हैं!लोकतांत्रिक देश का आम आदमी भौंचक्का सा मीडिया पर अपनी इंद्रियों को केंद्रित किए हुए है! 
"सच्चाई तो यह है यार कि न तो ढेरों घोषणाओं और योजनाओं के नाम पर वे मतदाताओं को रिझाने में  पूरी तरह तरह क़ामयाब हुए और न ही विकास, धर्म और जातिवाद के नाम पर! वरना अपेक्षित सीटों पर  उन्हें विजय ज़रूर हासिल होती!" टेलीविजन देखते हुए एक आदमी ने कहा।
"दरअसल ग़रीबों, पिछड़ों और किसानों को अपनी ओर खींचने की तमाम कोशिशों के बावजूद विरोधी दलों का संगठन बहुमत की मंज़िल के नज़दीक़ आते-आते  ही ठहर गया!" दूसरे साथी ने बड़े निराश स्वर में कहा।
"हमेशा की तरह दोनों संगठनों का विचार-मंथन जारी है!" पहला आदमी कुछ व्यंगात्मक लहज़े में  बोला।
 "यही तो आम जनता पर भारी है, भाई!" - दूसरे ने कहा।
"ये कोई वैसा विचार-मंथन नहीं है, ये तो बस पिछले भाषणों में कहे हल्के शब्दों और कटाक्षों पर ही एक-दूसरे पर पुनः हल्के शब्दों से कटाक्ष कर रहे हैं!" पहले आदमी ने हंसते हुए कहा।
"बंद करो यार, ये टी.वी!  बच्चों या औरतों जैसे इनके ज़िद्दी 'वाकयुद्ध' हर आम-ओ-ख़ास हैरान-परेशान है!" दूसरे साथी ने रिमोट मांगने के इशारे के साथ कहा।
"दोनों संगठनों के बड़बोले नेता और कार्यकर्ता कठपुतलियों से नाच रहे हैं, नारे लगा रहे हैं! लोगों को बरगला रहे हैं, बस!" पहला आदमी बड़बड़ाने लगा- "अपने ही किये का बस 'तमाशा' बनते देख रहे हैं, और क्या?"
"वोट-बैंक बरकरार रखने के प्रश्न हैं! किसी के लिए 'विकास' और किसी के लिए 'शोषण' ही वोट-बैंक के आधार है!" टेलीविजन बंद करने के बाद दोनों में बहस सी छिड़ गई।
"मतदाताओं की बेवक़ूफियों के नज़ारे हैं सब, भाई! विकास क्यों हारता है? धर्म-आधारित गतिविधियां क्यों जीतती हैं? इस सदी का भारतीय मतदाता जालों में फंसता क्यों है?" पहले आदमी ने एक साथ सवाल किये।
"ये सवालात हैं  या आम जनता और तथाकथित बुद्धिजीवियों के विवाद के आधार? या सब कुछ निराधार है? ढाक के तीन पात हैं या ढोल के भीतर पोल या किसी की ढाई दिन की बादशाहत, बस!" - दूसरे साथी की कही सच्चाई पर पहला भी स्तब्ध रह गया! 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 603

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 13, 2018 at 2:49am

बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब और जनाब नीलेश शेव्गांवकर  साहिब।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 12, 2018 at 11:57am

हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी साहब जी।आदाब।बेहतरीन लघुकथा।आज के राजनैतिक माहौल का कच्चा मगर सच्चा चिट्ठा।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 11, 2018 at 9:08pm

मेरे शब्द को मान देने के लिए आभार आदरणीय 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 7:27pm

आदरणीय नीलेश शेव्गांवकर जी, आपने बहुत ही गंभीर लोकतांत्रिक बात कही है।‌‌ ससमत होते हुए कहना चाहता हूं कि इस रचना में सभी तरह की बातें शामिल करने की कोशिश की गई है : मतदाता को बरगलाना/बहकाना और मतदाताओं की बेवक़ूफियां भी, जो कि झांसे/जाल में फंस जाने के कारण !  हालांकि उस संवाद में तनिक बदलाव किया जा सकता है आपके इशारे के मुताबिक़। बहुत-बहुत शुक्रिया।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 7:20pm

मेरी इस ब्लॉग पोस्ट पर समय देकर रचना को पसंद करते हुए सकारात्मक टिप्पणियों और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब, जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब, जनाब श्याम नारायण वर्मा साहिब और तस्दीक़ अहमद ख़ान साहिब।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 11, 2018 at 7:16pm

बारीक़ी से रचना के अवलोकन, बढ़िया इस्लाह और हौसला अफ़ज़ाई के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब नीलेश शेव्गांवकर साहिब।

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 11, 2018 at 6:23pm

जनाब शहज़ाद उस्मानी साहिब आदाब, राजनीति पर जबरदस्त लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Samar kabeer on April 11, 2018 at 6:07pm

जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत उम्दा लघुकथा,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on April 11, 2018 at 5:54pm

आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,

                                                बेहतरीन कथानक और कथानक में ताज़गी भी । संवाद भी ठीक । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Shyam Narain Verma on April 11, 2018 at 1:17pm
इस अच्छी लघु कथा के लिए बधाई, आदरणीय

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service