१२२२/१२२२/१२२२/१२२२
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बहुत आसाँ है दुनिया में किसी का प्यार पा लेना,
बहुत मुश्किल है ऐबों को मगर उस के निभा लेना.
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नज़र मिलते ही उस का झेंप कर नज़रें चुरा लेना,
मचलती मौज का जैसे किसी साहिल को पा लेना.
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बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
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मलंगों सी तबीयत है सो अपनी धुन में रहता हूँ
पिये हैं रौशनी के जाम फिर ग़ैरों से क्या लेना.
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मिलन होगा मुकम्मल जब मिलेगी बूँद सागर से
उस इक पल दरमियाँ से तुम बदन अपना हटा लेना.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. समर सर,
मैंने अपनी प्रति में सुधार कर लिया है
सादर
जनाब निलेश 'नूर' साहिब आदाब,बहुत उम्दा ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ ।
4थे शैर में 'तबीयत' को "तबीअत" कर लें ।
धन्यवाद आ, तेजवीर सिंह जी
आभार
हार्दिक बधाई आदरणीय निलेश जी।बेहतरीन गज़ल।
बहुत वादे वो करता है मगर सब तोड़ देता है,
ये दावा भी उसी का है कि मुझ को आज़मा लेना.
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