बुजुर्ग यानि हमारे युवा घर की आधुनिकतावाद की दौड़ में डगमगाती इमारत के वो मजबूत स्तम्भ होते हैं जिनकी उपस्थिति में कोई भी बाहरी दिखावा नींव को हिला नही सकता.उनके पास अपनी पूरी जिन्दगी के अनुभवों का पिटारा होता हैं जिनके मार्ग दर्शन में ये नई युवा पीढ़ी मायावी दुनिया में भटक नही सकती,लेकिन आज के दौर में बुजुर्गों को बोझ समझा जाने लगा हैं.उनकी दी हुई सीखे दकियानूसी बताई जाती हैं .ऐसा ही मैंने एक लेख में पढ़ा था जिसमे बुजुर्गों को पराली की संज्ञा दी गई.पराली वो होती हैं जो अनाज के काटने के बाद,ऊपरी हिस्सा बचता हैं उसे घर में न रखकर जलाकर नष्ट कर दिया जाता हैं या फिर उसे किसी कचरे के ढेर में फेक दिया जाता हैं,जहां उसमे जानवर भी भूख नही मारते.बुजुर्गों को पराली कहना कुछ गले से नही उतरा.आखिर वो बुजुर्ग जिन्होनें हमे अपनी ऊँगली पकडकर चलना सिखाया,जिन्होंने हमे अच्छे-बुरे की परख करवाई वो कैसे पराली हो सकते हैं??????पराली तो वो अनाज फलित तने के हिस्से से जुड़ा रहता हैं.पराली से ही तो फलता हैं,फूलता हैं और एक उपयोगी हिस्सा बनता हैं,पराली के बिना उसका क्या अस्तित्व????? ऐसे ही हमारे घर के बुजुर्ग हैं जिनके बिना हमारा कोई अस्तित्व नही......,जिनके बिना हमारे जीवन का कोई सार नही......यह सत्य बात हैं एक समय बाद उनकी जिम्मेदारियां न के बराबर हो जाती है.अब ,आज किसी को उनकी आवश्यकता नही होती लेकिन यह धारणा गलत होती हैं.हमे आज भी उनकी उतनी ही जरूरत होती हैं जितनी कि कल थी.आज तो आधुनिक समय में सभी का जीवन उच्च तकनीकी से अछूता नही रह गया हैं,ऐसे में हमे उन्हें बोझ न समझकर और न ही उन्हें अपने आप को,समाज और घर के लिए बोझिल न समझे.उन्हें उनकी दक्षता,काबलियत के हिसाब से उनका जीवन सार्थक बना देना चाहिए जिससे वो एक स्वाभिमानी की जिन्दगी व्यतीत कर सके.कहने का बस इतना सा तात्पर्य हैं कि बुजुर्ग हमारे पराली नही हैं.पराली को बेकार न समझकर उसे नष्ट न करे या न किसी अनुपयोगी जगह पर फेके[बुजुर्गो के लिए ब्रद्धाश्रम ]बल्कि उससे उपयोगी बनाकर उसको महत्वपूर्ण बनाया जा सकता हैं.वस्तु हो या इन्सान कभी कोई बेकार नही होता.कहते भी हैं कि बंद घड़ी भी चौबीस घंटे में दो बार सही समय बताती हैं.फिर ये हमारे घर की धरोहर हैं जिन्हें बहुत ही सहेज कर रखना चाहिए...बस,देखने का और समझने का नजरियाँ होता हैं,इसलिए बुजुर्गों को पराली नही बनने दीजिये.....
रचना मौलिक और अप्रकाशित हैं.
बबीता गुप्ता
Comment
सराहना करने के लिए आप सभी का सधन्यवाद.
आ. अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
आदरणीय बबिता जी, नमस्कार। बढ़िया आलेख की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
ये तो टालने वाली बात हुई?
प्रतिक्रया देने के लिए आप सभी का सधन्यवाद.
मोहतरमा बबीता गुप्ता जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
मंच पर आपकी सक्रियता रचना पोस्ट करने तक सीमित है,आप तो आपकी रचना पर आई टिप्पणियों के उत्तर भी नहीं देतीं? कृपया मंच पर अपनी सक्रियता दिखाएँ ।
आ. बबिता जी
बड़ों को पराली समझने वाले विकृत मानसिकता के लोग हैं..
बंद घड़ी वाला उदाहरण अच्छा लगा ..सही शब्द वृद्धाश्रम है..
आलेख के लिए बधाई
सादर
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