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बड़ी मुद्दत से टाला जा रहा है ।
किसी का जुल्म पाला जा रहा है ।। 1
मुझे मालूम है वह बेख़ता थी ।
किया बेशक हलाला जा रहा है ।।2
लगीं हैं बोलियां फिर जिस्म पर क्यूँ ।
यहाँ सिक्का उछाला जा रहा है ।।3
कहीं मैं खो न जाऊं तीरगी में ।
मेरे घर से उजाला जा रहा है ।।4
उसे महबूब की आहट मिली क्या ।
चमन को फिर खंगाला जा रहा है ।।5
नशे में है कहाँ वह रिन्द अब तक ।
कदम उससे संभाला जा रहा है ।।6
तुम्हारे इश्क में लुटता रहा मैं ।
दिवाला फिर निकाला जा रहा है ।।7
करेगा काम क्यों वह नौजवां अब ।
उदर तक तो निवाला जा रहा है ।।8
उसे इज्जत मिलेगी कौन जाने ।
मेरा लेकर हवाला जा रहा है ।।9
रहूँ खामोश अक्सर दर्द सहकर ।
मुझे सांचे में ढाला जा रहा है ।।10
बला का खूब सूरत चाँद होगा ।।
जिसे लेने रिसाला जा रहा है ।।11
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई नवीन जी, सुंदर गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आ0 श्याम नारायण वर्मा जी सादर आभार ।
आ0 तेजवीर सिंह साहब सादर आभार
आ0 कबीर सर सादर आभार । हलाला वाले शेर को हटा दूंगा सर ।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।
रहूँ खामोश अक्सर दर्द सहकर ।
मुझे सांचे में ढाला जा रहा है ।।10
जनाब नवीन जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल है, बधाई स्वीकार करें ।
दूसरा शैर स्पष्ट नहीं,'हलाला' के बारे में जानकारी हासिल करें,फिर लिखें ।
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई! |
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