2122 2122 2122 212
दर्द दिल के आशियाँ में इस क़दर पाले गये
आँख से लाली गई ना पांव से छाले गये
रोटियों से भूख की इतनी अदावत बढ़ गई
पेट में सूखे निवाले ठूंस के डाले गये
इस क़दर उलझे हुये हैं आलम-ए-तन्हाई में
मकड़ियां यादों की चल दी भाव के जाले गये
मुफ़लिसी की आँधियाँ थीं याद के थे खंडहर
नीव भी कमजोर थी सो टूट सब आले गये
ख़्वाब की आँखों से 'ब्रज' घटती नहीं हैं दूरियां
बात दीगर है सभी पलकों तले पाले गये
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
बृजेश कुमार 'ब्रज'
Comment
हार्दिक आभार आदरणीय त्रिपाठी जी...
वाह
बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई बधाई आपको ।
उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय नीलेश जी..सादर
स्वागत संग आभार आदरणीय मोहित जी...
अच्छी ग़ज़ल हुई है आ. बृजेश जी..
आप को बहुत बधाई..
सादर
आभार संग नमन आदरणीय लक्ष्मण धामी जी...
आ. भाई ब्रजेश जी, उत्तम गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय समर कबीर जी आपकी टिप्पड़ी से अति प्रसन्नता का अनुभव हुआ..आपका हार्दिक आभार..स्नेह बनाये रखें
जनाब बृजेश कुमार 'ब्रज' साहिब आदाब,अच्छी ग़ज़ल हुई है,बधाई स्वीकार करें ।
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