कलावती से आज मैं पहली बार अकेले नेहरु पार्क में मिल रहा था |इससे पहले उससे विज्ञान मेले में मिला था |वहीं पर उससे मुलकात हुई थी |उसका माडल मेरे माडल के साथ ही था |वह हमेशा खोई-खोई और उदास लगती थी |मैंने ही उससे बात शुरू की और पत्नी द्वारा बनाया गया टिफ़िन शेयर किया |लाख कोशिशों के बाद वह ज़्यादा नहीं खुली पर बात-बात में पता चला की वह अपने पति से अलग अपने बेटे को लेकर मायके में रहती है |उसकी नौकरी पक्की नहीं है और वह अपने और बेटे के भविष्य को लेकर काफ़ी परेशान है |विज्ञान मेले के आखिरी दिन मैंने उसका विश्वास जीत लिया और उसका फ़ोन नंबर प्राप्त कर लिया |उसके बाद हमारी रोज़ थोड़ी-थोड़ी बात होने लगी |मुझे अपनी बगुला होने पर गर्व महसूस हो रहा था |समय और अनुभवों से मैंने सीख लिया था की कौन सी मछली अपने ताल में असंतुष्ट है और दूसरे तालाब में जाने के लिए इस बगुले की पीठ पर आँख बंद करके सवार हो जाएगी |उस रोज़ से मेरे दिमाग में यही योजना थी की इस मछली को कैसे खाया जाए पर आज जब मेरे सामने वह टिफ़िन खोले बैठे है |मैं डरा हुआ हूँ और मुझे यह भ्रम हो रहा है की वह मछली नहीं कोई शार्क है जिसके बड़े जबड़ो में मैं,मेरा अस्तित्व और मेरा परिवार सब फँस जाएगा |तभी मुझे फ़ोन आता है |फ़ोन में कोई खास बात नहीं थी पर मैंने उसे कहा की किसी दोस्त के यहाँ एमरजेंसी है और मैं वहाँ से निकल गया |मैंने उसे एक मैसेज कर दिया है –अगर तुम्हारी भावनाओं को आहत किया हो तो सॉरी |पर मैं अपने परिवार को और धोखा नहीं दे सकता |फिर मैंने इस आखिरी मछली का नम्बर भी ब्लॉक कर दिया |अब एक सुकून था मैं न किसी की जूठन खा रहा हूँ ना किसी की प्लेट पर अनायास ही कब्ज़ा कर रहा हूँ |
10 मई 2018 बच्चों को पंकि्त-बद्ध करके मैं अल्पाहार वाले नियत स्थान पर ले आया |जसविन्द्र कौर जोकि सुरजीत की मम्मी थी कुछ और माताओं के साथ वहाँ बैठी थी |महीने का आखिरी दिन का मतलब दिल्ली के सरकारी स्कूलों का अर्धावकाश | पिछली दो तीन बार से ये माताएँ आखिरी दिन स्कूलों में रुक जाती हैं |
“सर,दो घंटे में ही आना-जाना पड़ेगा |हमें यहीं रहने दीजिए |एकबार ही बच्चों को लेकर लौट जाएँगे |” जसविन्द्र ने कहा तो प्रिंसिपल राजेश ने सहमति में सिर हिला दिया |बस तबसे इस तिकड़ी का यही नियम है | अनिल अपना फ़ोन अटेंड करके जैसे ही अपनी पंक्ति पर लौटा | जसविन्द्र कौर ने आवाज़ देकर पुकारा “सर,एथे आओ |”
“जी |”
“आप वैजिटेरियन हो या नॉन-वैजिटेरियन |”
“वक्त पर जो मिले वो खा लेते हैं |”
“ये तो सब खाता है |” विजयपाल जो वहीं खड़े थे और शायद पहले ही इस गिरोह की चुहुल में फँस चुके थे ने ज़ोर से हँसते हुए कहा |जबकि सुनील वर्मा वहीं पास खड़े हँस रहे थे |
“साफ़-साफ़ बताओं ना !”
“कहा तो जो आप खिला दोगे वो खा लेंगे |”मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा |
“आप बताओ क्या खाना चाहते हो ? वैसे मैं चिकन बड़ा सोणा बनाती हूँ |”
“लगता है तुम्हें अपने मुँह मिठू बनने का चाव है |
“ठीक है मैं एक दिन आपकों बनाकर खिलाती हूँ तब तो आप यकीन करोगे ना !”
“ये तो तभी बता पाऊँगा |”
“आप ये सब खुद बना लेते हो |”
“जी नहीं मैं सिर्फ़ खाने का शौक रखता हूँ |बनाने का दायित्त्व मेरी पत्नी का है |”
“वो फ़िश भी बना लेती हैं |”
“और क्या !अभी तो ये कल ही कह रहा था की इसके घर फ़िश बनी थी |”विजयपाल ने फ़िर कहा |
“अच्छा,ये विजयपाल सर क्या वैजिटेरियन हैं ?”
“किसने कहा !” मैंने शरारती मुस्काराहट से विजयपाल की तरफ़ देखा
“विजयपाल सर !खिलाना नहीं |पर झूठ तो मत बोलों ” जसविन्द्र ने हँसते हुए अपनी बात रखी
“नहीं-नहीं मेरे घर में कोई छूता तक नहीं |यहाँ तक की मैं किरायेदारों को भी नहीं बनाने देता |”
“सर ये तो जुल्म है की अगर आप नहीं खाते तो औरों को भी नहीं खाने दोगे |”
“छि : खाने के लिए क्या यही सब बचा है !”
विजयपाल ने नाक भौ सिकौड़ी तो जसविन्द्र बोली-सर पराई थाली में खाओ या ना खाओ पर कद्र तो करो |”
“हम दोनों ही शाकाहारी हैं |केवल अनिल ही है जो सब खाता है |वैसे भी हमने इसे खुला छोड़ रखा है जहाँ जाए मुँह मारे |इसे जो खिलाना है खिलाओ |”
सुनील वर्मा ने फिर बॉल मेरे पाले में डाल दी |
“मुझे कोई दिक्कत नहीं |अगर कोई प्यार से बनाकर लाए तो खाने में क्या दिक्कत है |वैसे मुझे लएग पीस बहुत पसंद है |” मैंने शरारती नजरों से जसविन्दर की तरफ़ देखते हुए कहा
“लएग-पीस में क्या है !मैं तो पूरी मुर्गी भून लाऊँ |बस आप खाने से इंकार ना करना |”
सुनील वर्मा ने आँख के ईशारे से मुझे वहाँ से निकल चलने को कहा |और हम सभी स्टाफ रूम में आ गए |
“ये सब शातिर खिलाड़ी हैं इनसे दूर ही रहा कर |” सुनील वर्मा ने समझाते हुए कहा
“मैं थोड़े गया था और ये सब तो आप लोगों का ही शगूफा था |मैंने तो आज तक उससे बात भी नहीं की थी वैसे मुझे आपकी खुला छोड़ने वाली बात बुरी लगी |”मैंने मुँह बनाते हुए कहा
“मेरा वो मतलब नहीं था बस जुबान फिसल गई |बुरा लगा हो तो सॉरी |”सुनील वर्मा ने कहा
“ये सरदारनी कुछ ज़्यादा ही बोल रही है |इससे दूर ही रहना |बहुत चालाक होती हैं ये---“ विजयपाल जी ने मुँह बनाते हुए कहा
“आपही तो गए थे हाल-चाल पूछने |” सुनील वर्मा ने उन्हें छेड़ते हुए कहा
“मैंने तो इतना ही कहा था की यहाँ रुकी हो तो अल्पाहार चख कर जाना तो सरदारनी ने ही मज़ाक छेड़ दिया की सर अगर आप बनाकर लाओगे तो खा लेंगे |”
“फिर---“
“मैंने पूछा की क्या खाना है तो बोली की उसे नॉन-वैज पसंद है |”
“यानि की तंदूर आपने गर्म किया है |” अनिल ने विजयपाल जी को छेड़ते हुए कहा
“मुर्गी तो सुनील जी की है वैसे भी कोई न कोई बहाना करके रोज़ इनके आगे-पीछे होती है |”
“उसका बच्चा मेरी क्लास में पढ़ता है इसलिए उस पर बहाना है |बहाने से उसने मेरा फ़ोन नम्बर ले लिया और एक दिन व्हाटसएप्प पर एक नॉन-वैज जोक भेज दिया |”
“अगले दिन जब मैंने उसे डाँट लगाई तो कहने लगी की शायद बच्चों ने भेज दिया हो ----हम इन चक्करों में नहीं पड़ते वैसे भी पराई मक्खनी के चक्कर में अपनी रुखी-सूखी से भी लोग हाथ धो बैठते हैं और फिर धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का |”
“आप तो डरा रहे हो |” मैंने गम्भीर होते हुए कहा
“मैं आगाह कर रहा हूँ |तुम्हें मछली खाने का शौक है वो भी दूसरे की थाली की |पर ये समझ लो सब मछली एक सी नहीं होती |अगर तुम्हें मछलियों की पहचान न हो तो पराई थाली में मुँह ना मारो |वरना कभी-कभी ऐसी मछलियाँ भी थाली में आ जाती हैं जिनके काँटे एकबार गले में फँस जाएँ तो जानलेवा साबित होते हैं |आजकल ये बात आम है |ऐसी औरते आजकल एक गिरोह का हिस्सा हैं |भोले-भाले शरीफ़ लोगों को फँसाना और फिर उन्हें ब्लैकमेल करना ये इनका धंधा है |”विजयपाल जी काफ़ी गम्भीर मुद्रा में थे
“अरे उस पवन सर्राफ़ के साथ भी तो ऐसा ही हुआ था |एक लड़की उसकी दुकान पर काम करने आई और एक महीने में ही पवन इस पर लट्टू |अगली ने उसे मिलने के लिए अपने घर पर बुलाया और वहाँ पर फ़िल्म बना ली |पहले प्यार के झाँसे में इससे पैसे लेती रही|बाद में जब इसने देने से मना कर दिया तो पुलिस में बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया |पुलिस वालों ने भी पवन को ही धमकाया और बेचारे को करोड़ो का वारा न्यारा करना पड़ा |और ये खबर तो अख़बार में भी छपी थी बस पवन का नाम नहीं आया था |”सुनील जी ने जानकारी दी
तब तक प्रिंसिपल राजेश भी आकर बैठ गए |वे ध्यान से सब सुन रहे थे |उन्होंने बताना शुरू किया -तीन दिन पहले की बात है |मेरे पड़ोसी की नरायना में फैक्ट्री है |रात ग्यारह बजे जब वो घर लौट रहे थे तो एक एक लड़की ने उनसे लिफ्ट माँगी |भले मानुष ने उसे लिफ्ट दे दी |थोड़ी देर बाद ही वह उसके कंधों पर और इधर-उधर हाथ रखने लगी |जब उसने डाटा तो वह गाड़ी के बॉक्स में हाथ डालने लगी |उसने एक लाख की कलेक्शन वहीं लिफ़ाफे में डाल रखी थी |पर लड़की को शायद पता नही लगा |वो फ़िर से वही हरकते करने लगी तो इसने गाड़ी रोक दी |लड़की ने कहा की अगर उसने उसे गाड़ी से उतारने की कोशिश की तो पीछे ऑटो में उसके साथी आ रहे हैं |वो चिल्ला देगी तब उसके साथी उसे पीटेंगे भी और पुलिस में भी ले जाएँगे |बेचारा गाड़ी चलाता रहा और आजू-बाजू पि.सी.आर तलाशता रहा |लड़की ने कहा की उसे पैसों की जरूरत है |वो उसे दस हज़ार रुपए दे दे और बदले में खुद को संतुष्ट कर ले |इसने इंकार कर दिया और कहा की उसके पास पैसे नहीं है |जब लड़की को उसकी बातों पर विश्वास हो गया तो बोली की अगर वो उसे घर जाने के लिए 500 रुपए दे देगी तो वह मामले को यहीं रफ़ा-दफ़ा कर देगी |इसने सोचा की 500 रुपए में जान बचती है तो इससे भला क्या ! इसने कार की सीट के नीचे से पैसे निकाले तो लड़की को और पैसे नजर आए |वो बोली की तुमने मेरा वक्त बर्बाद किया है इसलिए 2000 दो |जब इसने दो से हज़ार दिए तो अगली कहने लगी की उसके साथ चार लोग और हैं |कम से कम चार हज़ार चाहिए |बेचारा मरता क्या ना करता किसी तरह गला बचाया |-
इसलिए पराई मछलियों को खाने की तो छोड़ो उनकी महक से भी दूर रहो |
“क्या उन्होंने रिपोर्ट दर्ज नहीं कराई ?ऐसे तो यह गिरोह रोज़ किसी को शिकार बनाएगा |”अनिल ने पूछा
“उसका कहना है की उसे रोज़ उसी रस्ते से आना-जाना है |पुलिस अगर उन्हें पकड़ भी लें तो कुछ ले देकर वो सब बाहर आ जाएँगे और कल बदले की भावना से और बुरा भी कर सकते हैं |”
हूँ |इसका मतलब मुझे लैग-पीस और फ़िश का करार रद्द कर देना चाहिए |” मैंने विचार करते हुए कहा
“तुम अगर कहानी वाले धूर्त बगुले बन सकते हो तो जरुर खाओ |पर हर शुरुआत का एक अंत है |वैसे भी ये बाबा लोग भी तो वही करते हैं |मछलियाँ मजबूरियों में इन तक आती है और ये कहते हैं की तेरा तालाब जल्दी सूख जाएगा और सब नष्ट हो जाएगा और इन्हें सब्जबाग दिखाते हैं और इस बहाने वे ढेरों मछलियों का शिकार करते हैं पर अंत में कोई केकड़ा उनकी भी गर्दन काट देता है |”
“कहना क्या चाहते हो आप |” मैंने फ़िर पूछा
“बक्करवाला के स्कूल टीचर के साथ यही तो हुआ था |नौकरी के साथ प्रोपर्टी का धंधा था |देखने में सुंदर था और हंसमुख |बातों-बातों में औरतों को पटा लेता |एक बार एक बच्चे की माँ इसके झाँसे में आ गई और प्रेग्नेट हो गयी |उसका पति फौजी था |जब वह छुट्टी पर आया तो उसे शक हुआ और उसने एक दिन दोनों को इसके एक फ़्लैट पर पकड़ लिया और वहीं मार दिया |”
“पर ऐसा हर बार तो नहीं होता |”मैंने तर्क किया |
मेरे दिमाग में सीमा यानि केशव की माँ का चेहरा घूमा |अनपढ़ थी उसे मैंने दस्तखत सिखाए थे |दस्तखत सिखाने के लिए जब मैंने उसका हाथ पकड़ा था तो उसका चेहरा लाल पड़ गया था |बाद में वो सहज मछली सी मेरी मोहब्बत के जाल में फँस गई वो अलग बात ही की चंद रसभरी बातों के अलावा उसने मुझे आगे बढ़ने नहीं दिया और टपटपाती जीभ को और ललचा कर अपने बहुत से काम सीधे किए |------कुछ समय पहले जब मैंने उसे मार्किट में देखा तो उसका बदला रंग-ढंग देखकर मैं आँखे फाड़कर देखता रह गया |जींस टॉप और कटे हुए बाल |उसने मुझे देखकर अनदेखा कर दिया था और मैं समझ गया की यह मछली अब मेरी प्लेट में समा नहीं सकती |
“क्या सोच रहे हो ?” प्रिंसिपल सर ने ध्यानाकर्षित किया
“कुछ नहीं |”
तब सुनील वर्मा बोल पड़े -असंतोष जब हावी हो जाए और आप-गलत सही में फ़र्क न कर सको |तो अक्सर इसी तरह का परिणाम निकलता है |कई बार काँटे में मछली नहीं शार्क भी फँस जाती है और तब वह शिकार नहीं शिकारी हो जाती है |मेरे पिछले स्कूल में मीना नाम की टीचर थी |पति से अलग रह रही थी |वो भी दूसरे|पहला वाला पारा पीकर मर गया और मीना पर उसका मुक्द्म्मा भी चल रहा था |वो लंबे कद और भूरे गेहूं रंग की भरे-पूरे जिस्म की स्वामिनी थी | |कमर तक बाल और बड़ी-बड़ी मछरी सी गढ़ी आँखे |कुछ-कुछ रेखा जैसी |बात करने का लहज़ा ऐसा की कोई भी उस पर लट्टू हो जाए |अच्छे-अच्छे आदमी उसके हाव-भाव से पिंजरे के तोते हो जाएँ | आई तो यहाँ सजा के ग्राउंड पर थी पर पहले दिन से ही उसने जाल डालना शुरू कर दिया |कभी वह अंडे की भुजिया लाती |कभी ब्रेड-कटलेट तो कभी आलू पराठा और जिस मेल टीचर को अकेला पाती उसी के पास टिफ़िन लेकर पहुँच जाती |वो पर्स में हमेशा महँगी चॉकलेट रखती और किसी का भी मूड अपसेट देखती तो उसे चॉकलेट देती और दो चार मज़ाक कर लेती |हमारा एक रसिक तबियत का साथी सचिन झा उसके झाँसे में आ गया |और दोनों की एकांत बैठक होने लगी | झा ने उसके आग्रह पर अपनी पहचान पर एक जाननेवाले के यहाँ कमरा किराए पर दिला दिया |मीना ने उसे एक रोज़ कमरे पर बुलाया और किवाड़ बंद कर दिया |बेचारा जैसे-तैसे जान छुड़ाकर भागा |शाम को जब वो अपने घर गया तो वह उसकी पत्नी के पास बैठी बतिया रही थी |बेचारा साँसे टाँगे रहा और वो हँसती रही |अगले दिन आते ही मेरे साथी ने तबादले की अर्जी डाल दी |कुछ समय बाद उसका पुरुष साथियों से झगड़ा हो गया तो उसने छेड़छाड़ का आरोप लगाकर विभाग में अर्जी दे दी |सभी छह लोगों के साथ उसका तबादला हो गया |पुरुष साथी बस इतने से बच गए क्योंकि उसके खिलाफ़ पुराने स्कूल प्रिंसिपल से झगड़ने और पहले पति की हत्या रचने का मामला भी चल रहा था | उसका तबादला बेगमपुर कर दिया गया था |सुनने में आया की अपनी इन्वेस्टीगेशन के दौरान उसने किसी पुलिसवाले को भी अपने जाल में फँसा लिया था |
“सर,आपको मम्मी बुला रही हैं |”सुरजीत जोकि बिना पूछे अंदर आ गया मेरे पास आकर बोला और सभी लोग मुझे देखकर मुस्कुराने लगे |मैं झेंपते हुए बाहर आया |
“अपणा नंबर दऽसो |” उसने बड़े अधिकारभाव से कहा
“मुझे याद नहीं |” “तो मेरे नम्बर ले लो और घंटी दे दो |”
“मेरे फ़ोन का बैलंस खत्म हो गया है |” मैंने जान छुड़ाने की गरज से कहा |
उसने सुरजीत की कॉपी का एक पन्ना फाड़ा और उस पर अपना नम्बर लिखकर मुस्कुराते हुए दिया और चली गयी |
“ये औरत बहुत चालू है |” सुनील जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा |
उस शाम विद्यालय में चले विमर्श और आसपास होती ऐसी घटनाओं को सोच-सोचकर मेरा सिर फटा जा रहा था |पत्नी को जब सिरदर्द का पता लगा तो वह सिर मालिश करने लगी |बाद में उसकी छाती से लगकर और उसके तन का स्पर्श पाकर मुझे अजीब सी शांति मिली |---रात को भोजन के वक्त पत्नी ने तड़के वाली दाल और फुलका परोसा तो पड़ोस में भुनी जाती मछलियों की तीव्र गंध मन को विचलित करने लगी |सुबह का डिस्कशन फ़िर दिमाग में उठने लगा |मैंने उठकर खिड़की बंद की और मज़े से दाल-फुल्का खाने लगा | सुबह जब मैं उठा तो तरोताज़ा और ऊर्जा से भरा था |मैंने उठते ही उस दिन सारे नंबर ब्लॉक कर दिए सिवाए एक के |और उसे लिखा आज नेहरु पार्क में मिलते हैं |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अमुद्रित )
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