बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जिसने किया था ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।
तरक्की गांव में सड़कों पे देखी ।
फ़क़त गड्ढ़े ही भरवाए गये हैं ।।
पकौड़े बेच लेंगे खूब आलिम ।
नये व्यापार सिखलाये गये हैं ।।
बड़े उद्योग के दावे हुए थे ।
मिलों के दाम लगवाए गए हैं।।
मिली गंगा मुझे रोती हुई फिर ।
फरेबी जुल्म कुछ ढाये गये हैं ।।
इलेक्शन आ रहा है सोच लेना ।
तुम्हारे जख्म सहलाये गये हैं ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आदरणीय नवीन मणि जी, नमस्कार । आज कल की राजनीति पर बढ़िया कटाक्ष । प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई ।
बहुत बेचैन वो पाये गए हैं ।
जिन्हें कुछ ख्वाब दिखलाये गये हैं ।।
यकीं सरकार पर जिसने किया था ।
वही मक़तल में अब लाये गए हैं।।
वाह शानदार अशआर ... हर शेर आज को जीता है। .. इस दिलकश ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई सर।
हार्दिक बधाई आदरणीय नवीन मणि जी। बेहतरीन गज़ल।
चुनावों का अजब मौसम है यारों ।
ख़ज़ाने फिर से खुलवाए गए हैं ।।
करप्शन पर नहीं ऊँगली उठाना ।
बहुत से लोग लोग उठवाए गये हैं ।।
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