कुछ क्षणिकाएं :
1
शुष्क काष्ठ
अग्नि से नेह
असंगत आलिंगन
परिणति
मूक अवशेष
................
2
त्वचा हीन
नग्न वृक्ष
अवसन्न खड़े
अकाल अंत की
आहटों के मध्य
.............................
3
ईश्वर
किसी देवता का
सर्जन नहीं
गढ़त है वो
इंसान की
..........................
4
करता रहा
प्रतीक्षा
एक शंख
नाद के लिए
चिर निद्रा में सोये
मरघट में
अपने स्वामी के
श्वास की
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी प्रस्तुति को आत्मीय मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभारी है।
आदरणीय समर कबीर साहिब सृजन आपकी ऊर्जावान प्रशंसा का दिल से आभार।
आदरणीय अनामिका सिंह अना जी सृजन को मान देने का दिल से आभार
आदरणीय महेन्द्र कुमार जी प्रस्तुति अपनी अमूल्य प्रतिक्रिया से मान देने का दिल से आभार।
आदरणीय नीलम उपाध्याय जी सृजन को अपनी स्नेहिल प्रतिक्रिया से मान देने का दिल से आभार
आदरणीय नरेंद्र चौहान जी प्रस्तुति आपकी स्नेह की आभारी है।
बहुत खूब..
जनाब सुशील सरना जी आदाब,बहुत उम्दा क्षणिकाएँ लिखीं आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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