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कहते नहीं हैं आपसे रस्ता सुझाइये
राहों में यूँ न देश की रोड़ा लगाइये।१।
आता है भेड़िया तो कुछ हरकत दिखाइये
कमजोर गर ये हाथ हैं हल्ला मचाइये।२।
कहते हो दूसरों की है सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये।३।
होती नहीं है भोर इक सूरज उगे से ही
गर देखनी हो भोर तो खुद को जगाइये।४।
बातों को दिल की रोज ही ऐ चाँद चाँदनी
सुननी मेरी गजल हो तो महफिल में आइये।५।
मौलिक अप्रकाशित
Comment
आ. भाई विजय जी, सादर अभिवादन ।आपको गजल अच्छी लगी, लेखन सफल हुआ । प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
// कहते हो दूसरों की है सूरत अगर मगर
खुद को भी रोशनी में ये दर्पण दिखाइये ...//
गज़ल बहुत ही पसंद आई... हार्दिक बधाई
आ. नीलम जी, सादर अभिवादन । गजल की प्रशंसा के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, नमस्कार । अच्छी ग़ज़ल की पेशकश के लिए बधाई ।
आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार ।
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आदाब,
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल । हर शे'र माकूल है । शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।
मेरे कहे को मान देने के लिए धन्यवाद ।
आ. भाई शेख शहजाज जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और अत्साहवर्धन के लिए आभार ।
वाह। वर्तमान हालात पर प्रेरक अशआर समापन सहित बेहतरीन सृजन। हार्दिक बधाई मुहतरम जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहिब।
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