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कुछ दोहे -लक्ष्मण धामी"मुसाफिर"

सुखिया को संसार में, सब कुछ मिलता मोल
पर दुखिया  के  वास्ते, सकल  जिन्दगी झोल।१।

हर देहरी  पर  चाह  ले, आँगन बैठे लोग
भूखों को दुत्कार नित, मंदिर मंदिर भोग।२।


पाले  कैसी  लालसा, हर  मानव मजबूर
हुआ पड़ोसी पास अब, सगा सहोदर दूर।३।


बिकने को कोई बिके, पर ये दुख का योग
औने-पौने  बिक  रहे, ऊँचे  कद  के  लोग।४।


घुट्टी में सँस्कार की, अब क्या क्या खास
रिश्तों से आने लगी, अब जो खट्टी बास।५।

मौलिक व अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 22, 2018 at 5:00pm

आ. भाई पंकज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और नेक सलाह के लिए धन्यवाद

Comment by Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan" on August 22, 2018 at 12:13pm

आखिरी दोहा यूं करें तो मात्रतात्मक रूप से शुद्ध हो जाएगा........

संस्कार की घूँट में, जाने क्या है खास

रिश्तों से आने लगी, अब तो खट्टी बास

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 9:57pm

आ. भाई बसंत जी, दोहो की प्रशंसा और सलाह के लिए आभार ।

Comment by बसंत कुमार शर्मा on August 20, 2018 at 8:00pm

बहुत सुंदर दोहे, परिमार्जन अपेक्षित , बधाई आपको 

बचा कहाँ कुछ खास भी कर सकते हैं, यदि उचित लगे 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 7:53pm

आ. नीलम जी, सादर अभिवादन । दोहों की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 7:51pm

आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । उपस्थिति से दोहों का मान बढ़ाने के लिए आभार । इंगित पंक्ति को इस प्रकार लें -

घुट्टी में सँस्कार की, ऐसा क्या अब खास

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 7:46pm

आ. भाई आरिफ जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 20, 2018 at 7:43pm

आ. भाई नवीन जी, दोहों पर उपस्थिति,प्रशंसा और त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए आभार । 

मूल रूप में यह पंक्ति इस प्रकार है-

घुट्टी में सँस्कार की, ऐसा क्या अब खास

Comment by Neelam Upadhyaya on August 20, 2018 at 3:53pm

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, नमस्कार ।   अच्छे दोहे हुए हैं।  प्रस्तुति पर  हार्दिक बधाई स्वीकार करें  ।

Comment by Samar kabeer on August 20, 2018 at 2:49pm

जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब,बहुत उम्दा दोहे रचे आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

'अब क्या क्या खास'

इस पंक्ति में टंकण त्रुटिवश एक शब्द छूट गया है ।

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