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न कर जिक्र

जब तक है जान

काहे की फिक्र

 

मन अंतस

जजवातों से भरा

पर अकेला

 

धरते धीर

शिखर पहुँचते

बैसाखी पर

  

क्या पा लिया था

ये तब जाना, जब

उसे खो दिया

खुशी ही नहीं

तल्खियाँ भी देती हैं

तनहाईयाँ

 

… मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Neelam Upadhyaya on July 12, 2018 at 3:16pm
आदरणीय श्याम नारायण जी, बहुत बहुत आभार।
Comment by vijay nikore on July 12, 2018 at 1:08pm

हाइकू लिखने कभी आसान नहीं थे, परन्तु आपकी कलम ने तो कमाल ही कर दिया। आनन्द आ गया।

Comment by TEJ VEER SINGH on July 12, 2018 at 10:44am

हार्दिक बधाई आदरणीय नीलम जी। लाज़वाब प्रस्तुति।

Comment by Mohammed Arif on July 11, 2018 at 7:26pm

आदरणीया नीलम उपाध्याय जी आदाब,

                              सकारात्मक सोच को बढ़ाने वाले अच्छे हाइकु । कुछ वर्तनीगत अशुद्धियाँ हैं जैसे:- जिक्र/ज़िक्र ,खुशी/ख़ुशी , तल्खियाँ/ तल्ख़ियाँ , तनहाईयाँ/ तन्हाइयाँ ( शायद आपने अक्षर भार को सही करने के लिहाज से ऐसा किया है )  "जजवातों" यह शब्द मैं पहली बार पढ़ रहा हूँ । सही शब्द " जज़्बात " है । यहाँ पर भी आप अक्षर भार का संतुलन बनाने के लिहाज से ऐसा कर दिया जो कि ग़लत है ।

                       हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on July 11, 2018 at 3:04pm

//'एकला चलो रे//..हर हाल से बहादुरी से आत्मविश्वास के साथ दो-चार होते हुए असली दोस्त और दुश्मन की परख़ करते हुए अपनी लड़ाई अकेले लड़ते हुए  सफ़ल जीवन सकारात्मक नज़रिए से जीने की प्रेरणा और सबक़ देते बढ़िया हाइकु सृजन हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा।

Comment by Samar kabeer on July 11, 2018 at 2:46pm

मुह्ततरमा नीलम जी आदाब,अच्छे हाइकू हुए, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Shyam Narain Verma on July 11, 2018 at 2:36pm
शानदार रचना आदरणीया बहुत२ बधाई  ..सादर 

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