बेसबब बेसाख़्ता रफ़्तार है कुछ कीजिये
लड़खड़ाती जिंदगी हर बार है कुछ कीजिये
उठ रही हैं उँगलियाँ सब आपके घर की तरफ़
हाशिये पर आपकी दस्तार है कुछ कीजिये
वक्त आते ही डसेगा एक दिन वो आपको
आस्तीं में पल रहा मक्कार है कुछ कीजिये
आपके घर की तरफ़ से आ रहे पत्थर सभी
आपके घर में छुपा गद्दार है कुछ कीजिये
इस तरह तो मुफ़्लिसी दम तोड़ देगी भूख से
आसमां को छू रहा बाज़ार है कुछ कीजिये
हैं मुखालिफ़ कुछ हवायें हो रही कमजोर छत
डगमगाती आपकी सरकार है कुछ कीजिये
काम की मसरूफ़यत से घूमने जाते नहीं
आज बच्चे कह रहे इतवार है कुछ कीजिये
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
वाह शानदार गजल हुई है , बधाई आपको
क्या कहने आदरणीया बहुत ही शानदार ग़ज़ल कही है..
आद० गुरप्रीत जी ग़ज़ल पर सुख़न नवाज़ी का तहे दिल से शुक्रिया .
आद० नीलम जी ग़ज़ल पर सुख़न नवाज़ी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया
आदरणीया राजेश जी ,, वाह , बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ,, सभी अशआर बढ़िया ,, मकता ख़ास तौर पर बहुत पसंद आया
आदरणीया राजेशकुमारी जी, नमस्कार । बढ़िया ग़ज़ल की पेशकश के लिए हार्दिक बधाई ।
आद० लक्ष्मण धामी भैया आपको ग़ज़ल पसंद आई आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आद० श्याम नारायण जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया
आद० मोहम्मद आरिफ जी आपका दिल से बहुत बहुत शुक्रिया
आद० अजय कुमार जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
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