डायरी का अंतिम पृष्ठ
एक अरसे बाद, आज मेरे आवरण ने किसी के हाथों की छुअन महसूस की, जो मेरे लिए अजनबी थे। कुछ सख्त और उम्रदराज़ हाथ। मेरे पृष्ठों को उनके द्वारा पलटा जा रहा था। दो आँखें गौर से हर शब्द के बोल सुन रही थीं। मेरे अंतिम लिखित पृष्ठ पर आते ही ये ठिठक गईं। पृष्ठ पर लिखे शब्दों में से आकाश का चेहरा उभर आया। सहमा-सा चेहरा। उसने भारी आवाज़ में बोलना शुरू किया, "एक रिटायर्ड फ़ौजी, मेरे पापा। चेहरे पर हमेशा रौब, मगर दिल के नरम। आज उनकी बहुत याद आ रही है। जानता हूँ, स्वभाव से कड़क हैं वे। पर फिर भी कितनी ही बार मुझे लड़खड़ाते को संभाला। मेरी ही इच्छा पर उन्होंने मुझे घर से इतनी दूर कोचिंग लेने के लिए भेजा। इस भारी खर्चे को भी झेला। मेरी हिम्मत वे ही हैं। कभी न टूटने वाली चट्टान-से...."
चेहरे से डर का साया हटता महसूस हुआ। स्वर में हौंसला लौटने लगा,"यह जो हुआ मैं इसे सोच कर यूँ ही परेशान हूँ। मैं... अभी फ़ोन कर उन्हें बता देता हूँ कि पापा अबकी बार पी एम टी का परिणाम मेरे लिए सही नहीं आया। हाँ.. हाँ पापा से बात करके ही अब चैन मिलेगा।"
उम्रदराज आँखें फ़टी की फटी रह गईं। खुद के कहे शब्द कानों में ज़हर उंडेलने लगे और हृदय का तीर सम भेदन करने लगे, "इतनी सुविधाओं के बावजूद तुम्हारा यह हाल! हमने पेट पर पट्टी बाँधी और तुमने माल उड़ाया। शर्म नहीं आती। मुझे मुँह मत दिखाना।"
वे आँखें पश्चताप से झरने लगीं। हाथों ने मुट्ठियाँ भींच ली। मेरे इस पृष्ठ के सीने पर लिखे अंतिम शब्दों पर गर्म पानी के बुलबुले उभर आए। वर्ण सुरसा के मुख सम फैल कर भयावह लगने लगे।
और मैं चट्टान के टूटने को महसूस कर पा रही थी।
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय ब्रज भाई जी उतस्सहवर्धक एवं समीक्षात्मक टिपण्णी के लिए सादर हार्दिक आभार नमन
आदरणीय समर कबीर जी, सादर नमन! उत्साहवर्धन के लिए तहे दिल शुक्रिया।
आदरणीय तेजवीर जी उत्साहवर्धन के लिए सादर आभार नमन
आदरणीया नीलम उपाध्याय जी सादर आभार सह नमन!
उत्साहवर्धन के लिए सादर हार्दिक आभार आ बबिता गुप्ता जी, नमन सादर
आदरणीय सतविंद्र जी बड़ी खूबसूरती से अपने बहुत ही सटीक विषय को उठाया है लघुकथा में..माता पिता को ये समझना होगा कि एक परीक्षा की असफलता का मतलब योग्य या अयोग्य होने से नहीं है..
जनाब सतविन्द्र कुमार जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
हार्दिक बधाई आदरणीय सतविंदर जी।बेहतरीन लघुकथा।
आदरणीय सतविंद्र कुमार राणा जी, अच्छी लघुकथा की प्रस्तुति। बधाई स्वीकार करें ।
आशाओं पर पानी फिरते देख और वो भी धोखे में रखकर,बहुत ही मार्मिक कहानी,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
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