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हो खुदा पर यकीं अगर यारो
फिर न पैदा हो कोई डर यारो।
जिंदगी ये मिली हमें जिनसे
हों न देखो वे दर-ब-दर यारो।
ख़ार से जो भरी रहे हर दम
इश्क है ऐसी ही डगर यारो।
दर्द लगता दवा के जैसा अब
ये मुहब्बत का है असर यारो।
जो न मंजिल भी दे सके शायद
वो ख़ुशी दे रहा सफ़र यारो।
मौलिक अप्रकाशित
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आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सादर नमन! हौंसलाफ़ज़ाई के लिए सादर आभार
आदरणीय बृजेश भाई जी श्सआदर नमन! हौलाफ़ज़ाई के लिए सादर आभार।
आदरणीय शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहब सादर नमन! आपके स्नेह से प्रफुल्लित हूँ। यह आपकी मुझ नाचीज पर मुहब्बत ही है जो ऐसी उपमा का प्रयोग आपने किया जिसके लायक शायद ही इस जिंदगी में हो पाऊँ। बहुत-बहुत शुक्रिया। ये स्नेह बना रहे! आपको भी सपरिवार दीपोत्सव की असीम शुभकामनाएं!
आदरणीय समर कबीर जी सादर नमन! हौंसलाफ़ज़ाई के लिए तहेदिल शुक्रिया। स्ल। गोल्डनजुब्ली मुशायरे के ऐतिहासिक आयोजन में शिरकत न कर पाने का मलाल है। व्यस्तता इतनी है कि समय निकाल पाना ही मुश्किल हो रहा है। संक्षिप्त समय में कुछ कहने की कोशिश भी की थी, मगर कामयाब नहीं हो पाया। सादर
वाह। नूर-ए-ग़ज़ल। ग़ज़लालोक। आस्था, आत्मविश्वास, हक़ीक़त, मुहब्बत-अख़लाक़ की संदेशवाहक बेहतरीन रचना हेतु हार्दिक बधाई। दीपोत्सव पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं मुहतरम जनाब सतविंद्र कुमार राणा साहिब।
ख. भाई सतविन्द्र जी, अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।
आदरणीय सतविंद्र जी बढ़िया ग़ज़ल कही है..सादर
जनाब सतविन्द्र कुमार राणा जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।
आपने ओबी ओ के गोल्डन जुबली मुशायरे में शिर्कत नहीं की?
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