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लघु रचना : यथार्थ ...

लघु रचना : यथार्थ ...

एक मैं
चल दिया
एक मैं को
छोड़कर


एक यथार्थ
आभास हो गया
एक आभास
यथार्थ हो गया


जिसका वो अंश था
उस अंश में
उस यथार्थ का
वास हो गया

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 829

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Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 3:17pm


आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 3:16pm

आदरणीय विजय निकोर साहिब, सादर प्रणाम ... सृजन आपकी आशीष का आभारी है।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 2:40pm

आदरणीय मो.आरिफ साहिब, आदाब। ... सृजन के भावों पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 2:40pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी सृजन के भावों पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 2:40pm

आदरणीय समर कबीर साहिब, आदाब। ... सृजन आपकी आत्मीय प्रशंसा का दिल से आभार। कुछ दिनों से कंप्यूटर खराब था सो आभार व्यक्त न कर सका। अब ठीक हुआ है। विलम्ब के लिए क्षमा चाहूंगा।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 2:40pm

आदरणीय उस्मानी साहिब, आदाब ... सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया का दिल से शुक्रिया।

Comment by Sushil Sarna on August 14, 2018 at 2:39pm

आदरणीया बबिता गुप्ता जी सृजन पर आपकी मधुर प्रशंसा का दिल से आभार।

Comment by narendrasinh chauhan on August 11, 2018 at 10:29am
बहोत सुन्दर
Comment by Mohammed Arif on August 8, 2018 at 12:51pm

आदरणीय सुशील सरना जी आदाब,

                       'मैं ' को रेखांकित करती अच्छी पेशकश । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 7, 2018 at 8:25pm
आदरणीय सुशील सरना जी , इस गंभीर एवं दार्शनिक प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई , जिसने “ मैं “ को छोड़ दिया उसने बहुत कुछ पा लिया , शायद सब कुछ।
सादर।

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