"लो! एक और गया! .. बह गया बेचारा!"
"वो देखो! एक तो अब आ गया न!" आशावादी दृष्टिकोण वाले युवक ने तेज बहाव वाले जलप्रपात के किनारे वाली चट्टान पर खड़ी भीड़ से आसमान की ओर देखते हुए कहा। रेस्क्यू ऑपरेशन में भेजे गये इकलौते चॉपर हेलिकॉप्टर से लगभग चालीस लोगों को जलसमाधि से बचाना था। घने काले बादलों के अंधकार और रुक-रुक कर हो रही बारिश को झेलते हुए रेस्क्यू दल-सदस्य 'रस्सी की सीढ़ी' से पार्वती नदी के बीच चट्टान में फंसे चार-पांच युवाओं को ही बचाने में सफल हुए। क़रीब तीन सौ मीटर दूर किनारे की चट्टान पर खड़ी भीड़ में "स्वाधीनता-दिवस-पिकनिक" पर मोबाइल और पिकनिक-कैमरों से फोटो व वीडियो लेते हुए युवा कभी रेस्क्यू पर ताली बजा रहे थे, तो कभी बहने और बचने वालों की संख्या गिन रहे थे, लेकिन केवल दर्शक और चश्मदीद गवाह बन पा रहे थे मददगार नहीं!
"अरे... अरे.. एक और गया... बह गया... नहीं बचेगा!" एक युवक चिल्लाया।
""देख ! वो दूसरा वाला तैर गया! अपन भी सीख लो बच्चू तैरना!" दूसरा चिल्लाया और सोशल मीडिया पर वीडियो अपलोड करने लगा।
"वो देख! एक और चढ़ गया रस्सी की सीढ़ी से हेलिकॉप्टर पर!"
"अरे..अरे.. वो तो जाने लगा! ज़िला प्रशासन एक ही हेलिकॉप्टर भेज पाया चार घंटों में और वो भी गया!" एक अन्य युवक निराश होकर बोला और दूर की चट्टान में तेज जल-भंवरें झेलते युवाओं की चीखों को सुनने लगा।
"उन लोगों में दो-चार औरतें और दो-तीन बच्चे भी हैं! पिकनिक मनाते समय आधे घंटे तक जलप्रवाह सामान्य था; फिर अचानक ग़ज़ब हो गया! बारह बह गये साहिब ... बारह!" एक युवक ने मीडियाकर्मी और ज़िला-प्रभारी मंत्री जी को बताया! वे और ज़िलाधीश महोदय जाने कहां-कहां फोन करते रहे, लेकिन अंधेरा बढ़ जाने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन रुक गया। दूसरा कोई भी हेलिकॉप्टर न आ सका।
"जो गया, वो हेलिकॉप्टर भी न लौट कर आया! अंधेरा बढ़ रहा है! ... बारिश रुक नहीं रही!" दो पीड़ित युवा बेेेटोंं के पिता रोते हुए बोले।
"सुशासन है! जन-जागरूकता है! पिकनिक-मनोरंजन की विदेशी कला का अंधानुकरण है!" दूसरे पीड़ित परिवार के बुज़ुर्ग ने रोते हुए कहा- "हमारे मुल्क में आना-जाना ऐसे ही लगा रहेगा! पंद्रह अगस्त आया और गया! पिकनिक का उन्हें मज़ा आया, पर समझो अब तो सबका प्राण गया!"
"विदेशी मदद आ रही होगी! भगवान बारिश तो रोके पहले!" एक युवक के ये शब्द सुनकर 'आज़ाद विकासशील भारत' का एक युवा उसे आंखें फाड़कर कर देखता रह गया।
(मौलिक व प्रकाशित)
Comment
अपने. विचार साझा कर अनुमोदन, विचारोत्तेजक मार्गदर्शन और हौसला अफ़ज़ाई हेतु तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' साहिब, जनाब समर कबीर साहिब, जनाब मोह़म्मद आरिफ़ साहिब।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,बहुत ही शानदार लघुकथा,इस बहतरीन प्रस्तुति पर दिल से बधाई स्वीकार करें ।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,
बहुत ही सामयिक और प्रासंगिक लघुकथा । बेहतरीन और सशक्त आम भाषा में आमजन के संवाद । आधा देश बाढ़ की चपेट में है जिससे हज़ारों ज़िंदगियाँ संकट में फँसी है । राहत और बचाव कार्य नगण्य हैं । राहत सामग्री पर भी गंदी राथनीति का दबदबा देखा जा सकता है । राहत सामग्री के पैकेटों पर भी मुख्यमंत्री और प्रधान सेवक की फोटो और विशेष रंग का इस्तेमाँ देखा जा सकता है । राहत सामग्री के बहाने चुनाव प्रचार । हमारे नेतागण कितने गिर गए हैं सोचा भी नहीन था ।
हमने कल आज़ादी की 72वीं वर्षगाँठ मनाई मगर काल क़िले से देश में बाढ़ में मारे गए हज़ारों भारतवासियों के लिए संवेदना के दो बोल भी सुनाई नहीं दिए । हार्दिक बधाई स्वीकार करें ।
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online