"अरे, भाबीजी तुम तो अब भी घर पर ही जमी हो!" मोती ने बड़े ताअज्जुब से कहा - "ऊ दिना तो तुम बड़ी-बड़ी बातें फैंक रईं थीं कि अब नईं रहने इते हाउस-वाइफ़ बनके; बहोत सह लई!"
"तो का अकेलेइ कऊं भग जाते! ई मुटिया को न तो कोनऊ फ़ादर है, न गोडफ़ादर.. कोनऊ लवर या फिरेंड मिलवे को तो सवालइ नईये, मोती बाबू!"
"तुम तो कैरईं थीं कि पड़ोसन के घरे झांक-झांक के दुबले-पतले होवे की कसरतें सीख लईं तुमने और डाइटिंग करवा रये थे मुन्ना भाइसाब तुमें!"
"दुबरो करावे को उनको मकसद दूसरो हतो! तुम तो जानत हो मर्दन की फ़ितरतें! ऊ पड़ोसन के घरे झांक-झांक के 'ज़ीरो फिगर' चढ़ गओ है उनके दिमाग़ में!" भाभीजी ने बदन से सरकती साड़ी संभालते हुए कहा - "आओ मोती बाबू अंदर बैठो, वे आतइ होंगे थोड़ी देर में! तनक तुमईं से बतिया लें!"
"हओ चलो! भाबीजी तुम मोटी भले हो, लेकिन ग़ज़ब की टेलेंट है तुम में! पिछली नवरात्रि वारो तुमाओ डांस अबे भी हमरे दिमाग़ में छाओ है! ... सच्ची! हमरी मरियल सी लुगाई में तुम जैसी 'अपील' भी नईंये! तुम जुगाड़ तो लगाओ टीवी या फिलिम वालों तक पहुंचवे की!"
"तुमने हमरी जो फोटो उतारीं थीं, ज़ल्दी से एक बार फ़िर से दिखा दो न!"
"अरे ऊने सारी फोटुएं और अपन की सैल्फ़ियें सभईं डिलीट कर दईं और फोन भी ख़राब कर दओ गंवार ने! आत-जात कछु नईंयें, हम पे शक करत है!" सोफ़े पर भाभीजी की तरफ़ थोड़ा सा खिसकते हुए मोती ने अपनी भड़ास निकाल ही दी- "वो तो अच्छो रओ कि हमने पैल्अई इन्टरनेट पे चढ़ा दईं अपलोड करवा के!"
"शक़ को तो कोनऊ इलाज़ नईंये! हाउस-वाइफ़ हो चाहे आउट-वाइफ़ हो! मरद हो, चाहे औरत हो!" माथा पीटते हुए भाभीजी ने कहा - "तुमने हीरो जैसी बोडी जब से बनाई है, तुमाये मुन्ना भाइसाब भी तुमसे जलन लगे हैं! आतई होंगे! तुम अब ऊ वाली कुर्सी में बैठ जाओ! कहियो कि अभई-अभई तो आये हैं!"
"मतलब जो भओ कि अपन दोनोईं अपने-अपने लाइफ़-पार्टनर से निभा रये हैं, बस! शुकून नईंये जिंदगी में!"
"हओ! हम भी बहोत बोर हो रये! गनीमत समझो कि अभी अपन औलाद वाले नई भये! नईं तो वे और नाक में दम कर देते! इत्ती बातें भी न कर पाते अपन!"
"बिल्कुल सही कै रई हो, भाबीजी! पहले तो तुम कोनऊ पिराइवेट इस्कूल जोईन कर लो! उते बहोत से रास्ते निकल जैंहें पिरोगिरेस के! .. सच्ची!"
".. और फिरेंडसिप के भी! .. है नईं! .. लेकिन..!"
"लेकिन का मुटिया भाबीजी?"
"पहले तुमाये मुन्ना भाइसाब तो राजी होयें हमें नौकरी करावे! कहत हैं कि बारहवीं पास हो, कोई तोप नईं हो!"
"तोप तो हो भाबीजी तुम! ... तोप चलावो वालो चइये, बस! ज़माने की डिमांड मार्कशीटें अकेले नइयां! समझीं!" मोती बाबू ने भाभीजी के नज़दीक़ जाकर नज़रें गड़ा कर धीमे सुर में इतराते हुए कहा - "इडवांस हो गये सभईं! कछु नईं तो कोनऊ पुलीटिकल पार्टी जोईन करवा देहें! उहाँ तुम जैसिन के दिन फिरे में देर नईं लगत! सेंध लगावो अऊर बोलवो आओ चइये, बस!"
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
रचना के अनुमोदन और मेरी हौसला अफ़ज़ाई हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय समर कबीर साहिब, डॉ. विजय शंकर साहिब, आदरणीया नीलम उपाध्याय साहिबा और आदरणीया बबीता गुप्ता साहिबा।
दूसरों की थाली में कुछ ज्यादा ही घी नजर आता हैं,बेहतरीन रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजियेगा आदरणीय सरजी।
आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी , अच्छी लघु-कथा है. शीर्षक भी बहुत सही और सटीक है। हर कोई अपने हालात से परेशान है , परिवर्तन चाहता है , पर ढूंढता शार्ट-कट ही है। सही परिश्रम का रास्ता तो जैसे सूझता ही नहीं। प्रस्तुति के लिए बधाई , सादर।
आदरणीय उस्मानी जी, नमस्कार । बढ़िया लघुकथा की प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें।
जनाब शैख़ शहज़ाद उस्मानी जी आदाब,अच्छी लघुकथा हुई है,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
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